महिषासुर के वंशजों का सच
महिषासुर किसका पूर्वज था ?
असुर जनजाति : जी हाँ भारतवर्ष में असुर जाति झारखण्ड में और बंगाल में पाई जाती है। इस जाति के लोग स्वयं को महिषासुर का वंशज मानते हैं। इतिहासकारों के अनुसार महाभारत काल में झारखण्ड मगध के अंतर्गत आता था और ये बाहुबलि जरासंध के आधिपत्य में था। अनुमान किया जाता है कि जरासंध के वंशजों ने लगभग एक हज़ार वर्ष तक मगध में एकछत्र शासन किया था। जरासंध शैव था और असुर उसकी जाति थी। के. के. ल्युबा का कथन है कि झारखण्ड में रहने वाले वर्तमान असुर महाभारत कालीन असुरों के ही वंशज हैं। मुण्डा जनजाति समुदाय के लोकगाथा ‘सोसोबोंगा’ में असुरों का उल्लेख मिलता है जब मुण्डा 600 ई.पू. झारखण्ड आए थे।
असुर जनजाति प्रोटो-आस्ट्रेलाइड समूह के अंतर्गत आती है। ऋग्वेद तथा ब्राह्मण, अरण्यक, उपनिषद्, महाभारत आदि ग्रन्थों में असुर शब्द का अनेकानेक स्थानों पर उल्लेख हुआ है। बनर्जी एवं शास्त्री (1926) ने असुरों की वीरता का वर्णन करते हुए लिखा है कि वे पूर्ववैदिक काल से वैदिक काल तक अत्यन्त शक्तिशाली समुदाय के रूप में प्रतिष्ठित थे।
मजुमदार (1926) का मानना है कि असुर साम्राज्य का अन्त आर्यों के साथ संघर्ष में हो गया। प्रागैतिहासिक संदर्भ में असुरों की चर्चा करते हुए बनर्जी एवं शास्त्री ने इन्हें असिरिया नगर के वैसे निवासियों के रूप में वर्णन किया है, जिन्होंने मिस्र और बेबीलोन की संस्कृति अपना ली थी और बाद में उसे भारत और इरान तक ले आये. भारत में सिन्धु सभ्यता के प्रतिष्ठापक के रूप में असुर ही जाने जाते हैं।
राय (1915, 1920) ने भी मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा से असुरों को संबंधित बताया है। साथ ही साथ उन्हें ताम्र, कांस्य एवं लौह युग तक का यात्री माना है।
पुराने राँची जिले में भी असुरों के निवास की चर्चा करते हुए सुप्रसिद्ध नृतत्वविज्ञानी एस सी राय (1920) ने उनके किले एवं कब्रों के अवशेषों से सम्बधित लगभग एक सौ स्थानों, जिसका फैलाव इस क्षेत्र में रहा है, पर प्रकाश डाला है।
असुर जनजाति : जी हाँ भारतवर्ष में असुर जाति झारखण्ड में और बंगाल में पाई जाती है। इस जाति के लोग स्वयं को महिषासुर का वंशज मानते हैं। इतिहासकारों के अनुसार महाभारत काल में झारखण्ड मगध के अंतर्गत आता था और ये बाहुबलि जरासंध के आधिपत्य में था। अनुमान किया जाता है कि जरासंध के वंशजों ने लगभग एक हज़ार वर्ष तक मगध में एकछत्र शासन किया था। जरासंध शैव था और असुर उसकी जाति थी। के. के. ल्युबा का कथन है कि झारखण्ड में रहने वाले वर्तमान असुर महाभारत कालीन असुरों के ही वंशज हैं। मुण्डा जनजाति समुदाय के लोकगाथा ‘सोसोबोंगा’ में असुरों का उल्लेख मिलता है जब मुण्डा 600 ई.पू. झारखण्ड आए थे।
असुर जनजाति प्रोटो-आस्ट्रेलाइड समूह के अंतर्गत आती है। ऋग्वेद तथा ब्राह्मण, अरण्यक, उपनिषद्, महाभारत आदि ग्रन्थों में असुर शब्द का अनेकानेक स्थानों पर उल्लेख हुआ है। बनर्जी एवं शास्त्री (1926) ने असुरों की वीरता का वर्णन करते हुए लिखा है कि वे पूर्ववैदिक काल से वैदिक काल तक अत्यन्त शक्तिशाली समुदाय के रूप में प्रतिष्ठित थे।
मजुमदार (1926) का मानना है कि असुर साम्राज्य का अन्त आर्यों के साथ संघर्ष में हो गया। प्रागैतिहासिक संदर्भ में असुरों की चर्चा करते हुए बनर्जी एवं शास्त्री ने इन्हें असिरिया नगर के वैसे निवासियों के रूप में वर्णन किया है, जिन्होंने मिस्र और बेबीलोन की संस्कृति अपना ली थी और बाद में उसे भारत और इरान तक ले आये. भारत में सिन्धु सभ्यता के प्रतिष्ठापक के रूप में असुर ही जाने जाते हैं।
राय (1915, 1920) ने भी मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा से असुरों को संबंधित बताया है। साथ ही साथ उन्हें ताम्र, कांस्य एवं लौह युग तक का यात्री माना है।
पुराने राँची जिले में भी असुरों के निवास की चर्चा करते हुए सुप्रसिद्ध नृतत्वविज्ञानी एस सी राय (1920) ने उनके किले एवं कब्रों के अवशेषों से सम्बधित लगभग एक सौ स्थानों, जिसका फैलाव इस क्षेत्र में रहा है, पर प्रकाश डाला है।
जनसँख्या :- भारत में असुरों की जनसंख्या 1991 की जनगणना के अनुसार केवल 10,712 ही रह गयी है वहीं झारखण्ड में असुरों की जनसंख्या 7,783 है। झारखंड के नेतरहाट इलाके में बॉक्साइट खनन के लिए जमीन और उसके साथ अपनी जीविका गँवा देने के बाद असुरों के अस्तित्व पर संकट आ गया है।
धार्मिक मान्यता :- असुर प्रकृति-पूजक होते हैं। ‘सिंगबोंगा’ उनके प्रमुख देवता है। ‘सड़सी कुटासी’ इनका प्रमुख पर्व है, जिसमें यह अपने औजारों और लोहे गलाने वाली भट्टियों की पूजा करते हैं। असुर महिषासुर को अपना पूर्वज मानते है। हिन्दू धर्म में महिषासुर को एक राक्षस (असुर) के रूप में दिखाया गया है जिसकी हत्या माँ दुर्गा ने की थी। पश्चिम बंगाल और झारखण्ड में दुर्गा पूजा के दौरान असुर समुदाय के लोग शोक मनाते है।
प्रचलन यह भी है कि असुर जाति के बच्चे सिर्फ शेर के खिलौने से ही खेलते हैं किन्तु चूँकि शेर माँ दुर्गा का वाहन है इसलिए ये लोग शेर से बहुत घृणा करते हैं इसलिए शेर के खिलौने के सिर तोड़ देते हैं और बिना सिर के खिलौने से इनके बच्चे खेलते हैं।
महिषासुर का जिस दिन वध हुआ था उस दिन को ये शोक दिवस के रूप में मनाते हैं और उस दिन कोई भी ना तो घर से बाहर निकलता है और ना ही नए कपडे आदि पहनते हैं।
शिक्षा का स्तर भी ना के ही बराबर है और ये सब अपनी जुबानी संस्कृति को आगे ले जा रहे हैं जिसमें सोच और विचार का कोई अस्तित्व नहीं है।
पश्चिम बंगाल में असुर लाइन में रहने वाले 26 परिवारों में लगभग 150 सदस्य हैं। इन सबको अपने पूर्वजों से सुनी उस कहानी पर पूरा भरोसा है कि महिषासुर को मारने के लिए तमाम देवी-देवताओं ने अवैध तरीके से हाथ मिला लिए थे।
इस जनजाति के लोग पूजा के दौरान अपने तमाम काम रात में निपटाते हैं। दिन में तो वे बाहर क़दम तक नहीं रखते। अपने पूर्वजों की इस परम्परा का असुर जाति के लोग आज भी सम्मान करते हैं।
इस जाति के लोगों का मानना है कि "महिषासुर दोनों लोकों यानी स्वर्ग और पृथ्वी पर सबसे अधिक ताकतवर थे। देवताओं को लगता था कि अगर महिषासुर लंबे समय तक जीवित रहा तो लोग देवताओं की पूजा करना छोड़ देंगे।
इसलिए उन सबने मिल कर धोखे से उसे मार डाला।" महिषासुर के मारे जाने के बाद ही असुर जाति के पूर्वजों ने देवताओं की पूजा बंद कर दी। असुर वर्ष में एक दिन हड़िया यानी चावल से बनी कच्ची शराब और मुर्गे का मांस चढ़ा कर अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं।
असुर लाइन में अभी तक किसी ने भी स्कूल नहीं देखा है। इस जाति के बच्चों के लिए सच वही है, जो उन्होंने अपने पिता और दादा से सुना है। इन लोगों के खाने-पीने की आदतें भी आम लोगों से अलग हैं।
इसी विषय पर एक जनजातीय विद्वान के मत एवं कथन का उल्लेख करना चाहूंगा :
झारखंड के एक जनजातीय विद्वान प्रकाश उरांव ने कहा है कि देवी दुर्गा ने जिसे मारा था और जिसे सब दानव के रूप में जानते हैं, वह भारत की किसी जनजाति के लिए प्रेरणादायी या पूज्य नहीं रहा है. झारखंड सरकार की संस्था ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट (टाआरआई) के पूर्व निदेशक उरांव ने बताया, “सांख्यिकी संबंधी किसी भी किताब में महिषासुर से जनजाति के लोगों का कोई संबंध नहीं पाया गया है। न ही कोई महिषासुर की पूजा करता है.”
पूर्व निदेशक ने कहा कि एक जानकार होने के नाते खुद जनजातीय समुदाय से होने के बावजूद उन्होंने ऐसा कभी नहीं सुना कि महिषासुर किसी भी आदिवासी समुदाय के लिए एक प्रेरणास्रोत रहा. उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि यह कुछ लोगों का नया पैदा किया हुआ है। मैं झारखंड में ही पला-बढ़ा हूं। मैं जनजातीय हूं, लेकिन कभी नहीं सुना कि महिषासुर की पूजा किसी भी जनजातीय समुदाय के लिए प्रेरणा है।”
उरांव ने कहा, “वास्तव में असुर एक जनजाति है, जिसका पेशा लोहा गलाना है. लेकिन उनका भी महिषासुर की पूजा से कोई लेना-देना नहीं है।” उन्होंने कहा, “जनजातीय लोग अहिंसक और भोले-भाले होते हैं।”उरांव ने कहा कि महिषासुर के जनजातीय समुदायों द्वारा पूजने के लिए जिम्मेदार ठहराने के पीछे कोई राजनीतिक कारण हो सकता है। एक वर्ग ऐसा भी हो सकता है जो जनजातियों और दलितों को राजनीतिक कारणों से एक साथ लाने की कोशिश कर रहा हो।
अब यदि उपरोक्त सभी सन्दर्भों का विश्लेषण करने के पश्चात कुछ निष्कर्ष निकालने का प्रयास किया जाये तो स्पष्ट रूप से जो तस्वीर बनेगी वह सम्भवतः कुछ इस प्रकार होगी :
१. महिषासुर वास्तव में दानव या राक्षस प्रजाति से सम्बंधित था ना कि किसी जनजाति अथवा पृथ्वी के भू-भाग से और कुछ राजनीतिक स्वार्थों को अमली जामा पहनाने के लिए संभवतः कुचक्र रचा गया है जिससे कि देश को अलगाववाद की दिशा में धकेला जा सके।
२. जनजातीय समाज बहुत ही सरल और आसानी से विश्वास कर लेने वाला समाज होता है। जिन्हे कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा अपने कलुषित विचारों को पूरा करने हेतु धीमे जहर की भांति यह सब फैलाया गया है।
३. राजनीतिज्ञ एवं बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्षा मायावती का कथन है कि वह दलितों की अगुवा है और दलित हितों की रक्षा ही उसका मूल उद्देश्य है। तो उपरोक्त आंकड़ों के आधार पर शिक्षा एवं मूलभूत सुविधाओं से रहित असुर जनजाति के लोग यदि वास्तव ,में महिषासुर के ही वंशज हैं तो अब तक इसने उनके उत्थान के लिए क्या प्रयास किये हैं ?
५. उमर खालिद का पिता और पूर्व सिमी नामक प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन का अगुआ इलियासी इस सारी भेड़चाल को जायज और इसके खिलाफ दण्डकारी नीति को गलत बताता है ऐसे में मुस्लिम समुदाय भी प्रश्नों के कटघरे में आ खड़ा होता है कि आखिर उनका कौन सा स्वार्थ "महिषासुर" के साथ जुड़ा हुआ है जिसकी वजह से इलियासी महिषासुर को अपना पूर्वज बनाने पर तुला हुआ है ?
कहीं यह सिमी के पुनर्जागरण और उसमे इलियासी की सक्रियता को दबाने का षड्यंत्र तो नहीं है ?
४. जैसा कि JNU के छात्रों में महिषासुर के प्रति भक्ति का उद्गम हुआ और उन्होंने हिन्दू देवी-देवताओं के लिए तिरस्कार और अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया तो उनमे से कितने लोग वास्तव में उस जनजाति से सम्बंधित हैं और कितने लोगों ने उस जनजाति के उत्थान हेतु कोई योगदान दिया है ?
साथ ही इस सारे प्रकरण में कथित मुस्लिम संप्रदाय के लोग भी सम्मिलित हैं लेकिन मेरे और तथ्यों के आधार पर कोई भी मुस्लिम उस जनजाति के लिए फिक्रमंद तो नहीं दिखा आज तक, हाँ इन किवदंतियों की आड़ में देश को तोड़ने की मंशा जरूर जगजाहिर हो रही है।
५. JNU अध्यक्ष जो स्वयं बिहार के कथित अग्रणी और सवर्ण समुदाय भूमिहार से सम्बन्ध रखता है फिर अचानक उसका पूर्वज महिषासुर कैसे हो गया ?
इस तथ्य को अन्य भूमिहार सहज ही समझ और विवेचित कर सकते हैं।
४. जैसा कि JNU के छात्रों में महिषासुर के प्रति भक्ति का उद्गम हुआ और उन्होंने हिन्दू देवी-देवताओं के लिए तिरस्कार और अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया तो उनमे से कितने लोग वास्तव में उस जनजाति से सम्बंधित हैं और कितने लोगों ने उस जनजाति के उत्थान हेतु कोई योगदान दिया है ?
साथ ही इस सारे प्रकरण में कथित मुस्लिम संप्रदाय के लोग भी सम्मिलित हैं लेकिन मेरे और तथ्यों के आधार पर कोई भी मुस्लिम उस जनजाति के लिए फिक्रमंद तो नहीं दिखा आज तक, हाँ इन किवदंतियों की आड़ में देश को तोड़ने की मंशा जरूर जगजाहिर हो रही है।
५. JNU अध्यक्ष जो स्वयं बिहार के कथित अग्रणी और सवर्ण समुदाय भूमिहार से सम्बन्ध रखता है फिर अचानक उसका पूर्वज महिषासुर कैसे हो गया ?
इस तथ्य को अन्य भूमिहार सहज ही समझ और विवेचित कर सकते हैं।
६. दलित मसीहा मायावती का एक पूर्व उद्धवरण मुझे याद आता है और बहुत से दलित बुद्धिजीवी भी दलितों को बहादुर क्षत्रिय वंशीय मानते हैं जैसे की "चंवर वंशीय", "नाग वंशीय" तो इस आधार पर कोई भी क्षत्रिय या बहादुर राजवंशीय परिवार में आज तक "महिषासुर" की पूजा करने का कोई उल्लेख नहीं मिलता है तो फिर आज अचानक "महिषासुर" कैसे दलितों का अग्रणी आराध्य हो गया ?
७. भारतवर्ष की पैशाचिक राजनीतिक पार्टी "कांग्रेस" भी इस सारी भेड़चाल में बहुत बड़ी भूमिका निभा रही रही है और उनका राजकुमार भी इसके समर्थन में खड़ा नजर आता है - जो प्रायः कहता रहता है कि "देशभक्ति मेरी नशों में बहती है" जैसा की मुझे याद है अमेठी में एक भाषण के दौरान उसी राजकुमार ने एक बात कही थी "मेरी रगों में भी सवर्ण खून है और मैं भी सवर्ण हूँ" फिर आज की दशा में कैसे सवर्ण का पिता "महिषासुर" बन गया ?
८. देश में आजादी के बाद से ही "पैशाचिक पार्टी कांग्रेस" का सबसे लम्बे शासन काल का इतिहास रहा है तो क्यों नहीं कांग्रेस ने "असुर जनजाति" के विकास और शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबंध किया और उनके विकास के मार्ग प्रशस्त किये ?
यदि 60 सालों में इनका कोई भी सम्बन्ध नहीं रहा तो आज कैसे यह महिषासुर के साथ पुत्रप्रेम जागृत हुआ ?
९. वामपंथ का जन्म और विकास भी मूल रूप से बंगाल क्षेत्र में ही हुआ - आज वे इसे विकासवादी विचार और इसके समर्थन में अगवाड़ा-पिछवाड़ा सब खोले खड़े हैं। बंगाल के असुर लाइन में १० घरानों में रह रहे असुर जनजाति के लोगों का कितना विकास और समर्थन किया है अब तक इन लोगों ने।
निष्कर्ष : सीधी सी बात है जिन लोगों को भी महिषासुर में अपना बाप नजर आ रहा है उनमे से किसी ने भी अपने बाप की अन्य संतानों "असुर जनजाति" के हित के लिए आज तक कुछ नहीं किया - बस मात्र भारत की विकास की दिशा अवरुद्ध करके अलगाववादी शक्तियों से मिलकर भारत को बरबाद करना ही उनकी प्राथमिकता है और इस मिशन में "पैशाचिक पार्टी कांग्रेस के साथ वे सभी लोग शामिल हैं जो अपने स्वार्थ के लिए मरे हुए महिषासुर को अपना बाप कह रहे हैं किन्तु वास्तविक संतान (असुर जनजाति) के हितार्थ इनका कोई दायित्व नहीं है।
No comments:
Post a Comment