Friday, March 11, 2016

कश्मीर का इतिहास - History of Kashmir

कश्मीर के हालात कांग्रेस का हाथ - Kashmir ke halat Congress ka hath (कश्मीर नरसंहार)


मित्रों जैसा कि अपने अब तक के लेखों में मैं बता चुका हूँ कि कांग्रेस वास्तव में कभी भारतवर्ष की हितैषी रही ही नहीं यह मुस्लिमों द्वारा उत्पन्न और अंग्रेजों द्वारा प्रायोजित रही है, इस क्रम आज पुनः कुछ अकाट्य साक्ष्यों के साथ आप सबके साथ उपस्थित हूँ कश्मीर की समस्या को लेकर - इस लेख को पढ़ने के बाद आप सबके दिलों में राजनीति की गंदगी और कांग्रेस की देशभक्ति की भावना उजागर हो जाएगी।

बहुधा हम सुनते आये हैं कि कश्मीर भारत के मस्तक के स्थान पर सुशोभित है लेकिन क्या है कश्मीर का इतिहास और क्यों कश्मीर की समस्या भारत और पाक के बीच कैसे उपजी आइये इसका विश्लेषण करते हैं और यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि इस समस्या का वास्तविक जन्मदाता कौन था।

मुस्लिम आधिपत्य से पूर्व कश्मीर की संस्कृति बहुत ही समृद्धिशाली रही थी (इसका वर्णन कल्हण कृत राजतंगिणी में देखा जा सकता है ) किन्तु मुस्लिम आक्रमणों ने सारी समृद्धि को तहस-नहस कर कश्मीर को दासता की जंजीरों में जकड़ दिया और हिन्दुओं पर अत्याचार और उन्हें धर्म परिवर्तन पर मजबूर कर दिया गया।

सन 1487 में अकबर ने कश्मीर को मुग़ल साम्राज्य का अंग बना लिया और आने वाली पीढ़ियां उसे एक हिल स्टेशन की तरह प्रयोग करती रहीं।

धीरे-धीरे मुग़ल शिकंजा कमजोर होने लगा और अफगान लुटेरे अहमदशाह अब्दाली ने 1750 में भारत पर आक्रमण किया और कश्मीर पर अपना अधिपत्य स्थापित किया और तत्पश्चात लगभग 1811 तक विभिन्न पठान शासक उस पर राज करते रहे।

मुस्लिमों की क्रूरता के कई वर्णन इतिहासकार इस प्रकार करते हैं :

१. तेरहवीं शताब्दी में तारतारों ने कश्मीर पर आक्रमण किया उस समय राजा के सेनापति ने स्वात के शाहमीर और तिब्बत के रायचंद शाह को सहायता के लिए बुलाया, रायचंद शाह बलवान था उसने कुचक्र रचकर सेनापति को ही मरवा दिया और उसकी पुत्री से विवाह रचाकर स्वयं कश्मीर पर आधिपत्य कर लिया। चूँकि तत्कालीन सन्दर्भ में हिन्दुओं की आत्मीयता उसे प्राप्त नहीं हुयी अस्तु उसने मुस्लिम धर्म ग्रहण कर अपना नाम सदरुद्दीन रखा तथा गद्दी पर बैठा।

२. सदरुद्दीन के मृत्योपरांत स्वाट के मीरशाह ने कश्मीर पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन कर लिया।

३. परम्परागत रूप से 1394 में सिकंदर नामक सुल्तान गद्दी पर बैठा। वह घोर हिन्दू विरोधी था उसने इस्लाम के प्रचार के लिए हिन्दुओं के सामने तीन विकल्प रखे :

अ. या तो धर्मान्तरण करो
ब. अथवा देशत्याग करो
स. अथवा मृत्यु वरण करो

कहते हैं धर्मान्तरण ना स्वीकार करने और देशत्याग न करने वालों को उसने मरवा दिया और उनके जनेऊ एकत्र करवाये और पोटली बंधवाकर जब उसका वजन करवाया तो उन जनेऊ का भार सात मन था (लॉरेंस द्वारा लिखित कश्मीर का इतिहास)

हिन्दुओं के विद्याभास और अनेक ग्रंथों को जलाशयों में डुबो दिया गया।

४. इसी क्रम में आजादखान नामक पठान शासक की क्रूरता भी मशहूर रही वह जोड़े में ब्राह्मणों को घास की बोरियों में बंद करवाकर सरोवर में डुबो दिया करता था।

५. मीर हजर ने चमड़े के थैलों में ब्राह्मणों को बंद कर सरोवर डुबाने का कार्य जारी रखा। 

६. महमूदखान तो सबसे चार कदम आगे था वह स्त्रियों के बलात्कारी के रूप में कुख्यात हुआ - लोग अपनी लड़कियों के सर मुंडवा देते थे - और उनके सौंदर्य छुपाने के लिए उनकी नाक कटवा देते थे।

शूर शिरोमणि महाराजा रणजीत सिंह ने सन 1811 में मुसलमानों के चंगुल से पंजाब और कश्मीर को आजाद करवाया और सन 1846 तक कश्मीर सिख शासकों के अधीन ही रहा।

कश्मीर का जम्मू का हिस्सा 1750 के पश्चात रणजीत देव नामक राजपूतवंशीय डोगरा राजा के अधिपत्य में था 1780 में राजा की मृत्यु के बाद उनके वंश के तीन युवक गुलाबसिंह, चिंबल, सुचेत सिंह क्रमशः जम्मू, पुंछ, रामनगर के प्रतिनिधि थे आगे चलकर गुलाब सिंह ही अघोषित शासक के रूप में प्रतिष्ठित रहे।

सन 1846 में अंग्रेज और सिख युद्ध की समाप्ति हुयी, अंग्रेज विजयी रहे गुलाब सिंह ने शर्त के रूप में जम्मू और कश्मीर की स्वतंत्रता के लिए एक करोड़ रुपये अमृतसर संधि पत्र 16 मार्च १८४६ के आधार पर चुकाए।

डेंजर इन कश्मीर - जोसेफ कार्बेल : लिखते हैं कि मुस्लिम शासन काल में स्त्रियों को भगाना-बलात्कार आदि अबाध गति से जारी रहे।

संस्कृति की ध्वस्त नींव पुनः मजबूत हो इस अभिप्राय से राजा ने 19 वीं शताब्दी के मध्य में संस्कृतिकरण और शुद्धिकरण का प्रयास किया किन्तु काशी के पंडितों के विरोध किया और इसे अधर्म कहकर राजा को धमकी दी कि यदि वे ऐसा करेंगे तो हम जान दे देंगे और राजपुरोहित ने ऐसा प्रयास भी किया इस वजह से शुद्धिकरण के प्रयास को ग्रहण लग गया ( श्री बालशास्त्री रचित डॉ मुंजे का चरित्र खंड १ पृष्ठ 51 )

सन 1857 में राजा गुलाबसिंह का देहांत हो गया और उनके सुपुत्र हरीसिंह 1885 तक शासक रहे उसके पश्चात प्रतापसिंह 1915 तक शासक रहे उसके बाद उनके पुत्र हरीसिंह ने गद्दी संभाली।

राजा हरीसिंह हिन्दू थे और वे भलीभांति मुस्लिम कार्यप्रणाली और उनकी आदतों से परिचित थे अस्तु उन्होंने सभी महत्वपूर्ण पदों पर हिन्दुओं को ही रखा हुआ था। क्योंकि मुस्लिम राजनिष्ठा जैसी किसी बात पर भरोसा करने लायक नहीं थे।

पाकिस्तान का निर्माण हो चूका था और लगभग दो माह बाद 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानियों ने टोलीवालों (तत्कालीन आतंकवादी और लुटेरे) को आगे कर कश्मीर पर धावा बोल दिया।

कश्मीर की सेना लेफ्टिनेंट नारायण सिंह की अगुवाई में मुजफ्फराबाद में इकट्ठी हुयी ( नारायण सिंह को अपनी सेना यहाँ तक कि मुस्लिमों पर भी बहुत भरोसा था ) सेना में डोगरे और मुसलमान दोनों थे।

राजा ने लेफ्टिनेंट कर्नल नारायण सिंह से पूछा भी था "सेनापति ! आपकी वाहिनी में आधा सैन्यबल मुस्लिम है और युद्ध किस प्रकार का है इससे भी आप परिचित हैं, इस दशा में क्या मुस्लमान सैनिक आपकी आज्ञा का पालन करेंगे ? क्या आप उनकी निष्ठां पर भरोसा कर सकते हैं ?"

सेनापति ने कड़ककर जवाब दिया था "महाराज ! मेरा और मेरे सैनिकों का संपर्क कोई एक या दो दिनों का नहीं है, वरन कई वर्षों से हम साथ हैं। डोगरा सैनिक मुझे जितने विश्वासपात्र लगते हैं उससे कहीं अधिक मुसलमान सैनिक मेरे भरोसे को बचाएंगे "
क्रमशःअगले भाग में  

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