Thursday, February 25, 2016

जवाहर लाल नेहरू का सच बनाम छुपाया गया इतिहास - Jawahar Lal Nehru Ka Sach banam Hidden Hostroy


जवाहर लाल नेहरू बनाम गांधी या गाजी
कांग्रेस की रवायतें 
कांग्रेस ब्रिटिश आयातित मुस्लिम संस्कृति पोषित हिन्दू विरोधी क्यों ?


जबसे कांग्रेस और कांग्रेस समर्थकों ने कहना आरम्भ किया कि कांग्रेस ने अपना खून देकर सींचा है भारत को और मैंने ट्विटर पर अपना स्टेटमेंट दिया कि "कांग्रेस ब्रिटिश आयातित और पाक प्रायोजित है।"

दिमाग में चुल्ल मच गयी कि ये स्टेटमेंट आया ही क्यों ?

तो शुरू की खोज जिसमे मेरे स्टेटमेंट के समर्थन में बहुत से लेख और साक्ष्य मिले लेकिन इतना स्पष्ट और विस्तार वाला कोई भी लेख ना मिला जो मेरी अंतरआत्मा को भी प्रभावित कर सकता, इसी क्रम में खोज जारी रखी और एक दिन अंतर्जाल में जा पहुंचा डॉ दिव्या श्रीवास्तव के ब्लॉग में और जब पूरी जानकारी पढ़ी तो ऐसा लगा कि जैसे मेरी तलाश इसी दिशा में थी और यही ढूंढ रहा था मैं जिसकी धुंधली सी तस्वीर घूम रही थी मेरे दिमाग में।

यह जानकारी पर्याप्त और साक्ष्य आधारित थी जो भारत वर्ष के जन-मानस की आँखें खोलने के लिए पर्याप्त थी।

जैसा कि डॉ दिव्या ने लिखा था इस लेख में कि इस जानकारी का मूल श्रोत कोई और ही हैं जो अमर उजाला के जाने-माने पत्रकार और लेखक श्री दिनेश चंद्र मिश्र जी (लखनऊ) जी की पहल का परिणाम है और उन्ही के द्वारा लिखा गया है।

अस्तु मेरे इस लेख में लगभग सारी चीजें उनके लिखे मौलिक लेख के अनुसार उनकी ही जुबानी होंगी, कुछ जोड़-घटाव मैं अलग से इसलिए करूँगा कि मेरे विज़िटर्स को वास्तव में मेरी लेखनी और उसके तरीके से कुछ अलग ही प्रेम है अस्तु उन्हें यह भी ना लगे कि मैं भी अब चोरी-चकारी करके लेख छापने लगा।

मैं आदरणीय दिनेश चन्द्र जी से क्षमा प्रार्थी हूं कि उनकी अनुमति के बिना उनका लेख मैं अपने ब्लॉग में प्रस्तुत कर रहा हूं - किन्तु मैं पूर्ण विश्वास दिलाता हूं कि यदि उन्हें कोई आपत्ति होगी तो यथोचित प्रयास मैं उनकी शिकायत के निवारणार्थ अवश्य करूँगा।


मूल लेख को देखने हेतु अपने पाठकों के लिए यहाँ लिंक भी दे रहा हूं - आशा है कि यह जानकारी एक अन्य विश्वास और दफ़न इतिहास की सच्चाई के रूप में सब लोगों तक पहुंचेगी।


http://roamingjournalist.blogspot.in/2011/11/blog-post_16.html


http://zealzen.blogspot.in/2012/02/blog-post_29.html?m=1





वास्तव में एक पत्रकार हो या लेखक इनके मन में हमेशा बवंडर उठते रहते हैं और यदि वास्तव में पूर्वधारणाओं या पूर्वाभासों से ग्रस्त ना हों तो किसी भी विषय की बखिया उधेड़ सकते हैं और अपने इसी क्रम में दिनेश चन्द्र जी लिखते हैं कि :

"जम्मू-कश्मीर में आए महीनों हो गए थे, एक बात अक्सर दिमाग में खटकती थी कि अभी तक नेहरू के खानदान का कोई क्यों नहीं मिला, जबकि हमने किताबों में पढ़ा था कि वह कश्मीरी पंडित थे। नाते-रिश्तेदार से लेकर दूरदराज तक में से कोई न कोई नेहरू खानदान का तो मिलना ही चाहिए था। नेहरू राजवंश कि खोज में सियासत के पुराने खिलाडिय़ों से मिला लेकिन जानकारी के नाम पर मोतीलाल नेहरू के पिता गंगाधर नेहरू का नाम ही सामने आया। अमर उजाला दफ्तर के नजदीक बहती तवी के किनारे पहुंचकर एक दिन इसी बारे में सोच रहा था तो ख्याल आया कि जम्मू-कश्मीर वूमेन कमीशन की सचिव हाफीजा मुज्जफर से मिला जाए, शायद वह कुछ मदद कर सके।"

वास्तव में रिसर्च की दिशा और प्रयास में बहुधा असफलताएँ मिलती हैं, यही वजह है कि आज के युग में लेखन और पत्रकारिता दोनों अपना सम्मान और धार खोते जा रहे हैं, बहरहाल हमारे दिनेश जी अगले दिन पहुँच जाते हैं अगले गंतव्य की तरफ :


"अगले दिन जब आफिस से हाफीजा के पास पहुंचा तो वह सवाल सुनकर चौंक गई। बोली पंडित जी आप पंडित नेहरू के वंश का पोस्टमार्टम करने आए हैं क्या? कश्मीरी चाय का आर्डर देने के बाद वह अपने बुक रैक से एक किताब निकाली, वह थी रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज कि किताब "ए लैम्प फार इंडिया- द स्टोरी ऑफ मदाम पंडित।" उस किताब मे तथाकथित गंगाधर का चित्र छपा था, जिसके अनुसार गंगाधर असल में एक सुन्नी मुसलमान थे जिनका असली नाम था गयासुद्दीन गाजी।

इस फोटो को दिखाते हुए हाफीजा ने कहा कि इसकी पुष्टि के लिए नेहरू ने जो आत्मकथा लिखी है, उसको पढऩा जरूरी है। नेहरू की आत्मकथा भी अपने रैक से निकालते हुए एक पेज को पढऩे को कहा। इसमें एक जगह लिखा था कि उनके दादा अर्थात मोतीलाल के पिता गंगाधर थे। इसी तरह जवाहर की बहन कृष्णा ने भी एक जगह लिखा है कि उनके दादाजी मुगल सल्तनत बहादुरशाह जफर के समय में नगर कोतवाल थे।"

अब इतिहासकारो ने खोजबीन की तो पाया कि बहादुरशाह जफर के समय कोई भी हिन्दू इतनी महत्वपूर्ण ओहदे पर नहीं था।


और खोजबीन करने पर पता चला कि उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे नाम थे भाऊ सिंह और काशीनाथ जो कि लाहौरी गेट दिल्ली में तैनात थे। लेकिन किसी गंगाधर नाम के व्यक्ति का कोई रिकार्ड नहीं मिला है।"


अब हमारे लेखक ने और भी ऐतिहासिक रिकॉर्ड खोजने शुरू किये और इस खोज के दौरान बहुत से चौंकाने वाले तथ्य भी उन्हें हासिल हुए, जिनका विवरण क्रमशः आता रहेगा।




नेहरू राजवंश की खोज में मेहदी हुसैन की पुस्तक बहादुरशाह जफर और 1857 का गदर में खोजबीन करने पर मालूम हुआ। गंगाधर नाम तो बाद में अंग्रेजों के कहर के डर से बदला गया था, असली नाम तो था गयासुद्दीन गाजी। जब अंग्रेजों ने दिल्ली को लगभग जीत लिया था तब मुगलों और मुसलमानों के दोबारा विद्रोह के डर से उन्होंने दिल्ली के सारे हिन्दुओं और मुसलमानों को शहर से बाहर करके तम्बुओं में ठहरा दिया था। जैसे कि आज कश्मीरी पंडित रह रहे हैं। 

अंग्रेज वह गलती नहीं दोहराना चाहते थे जो हिन्दू राजाओं-पृथ्वीराज चौहान ने मुसलमान आक्रांताओं को जीवित छोडकर की थी, इसलिये उन्होंने चुन-चुन कर मुसलमानों को मारना शुरु किया। लेकिन कुछ मुसलमान दिल्ली से भागकर पास के इलाकों मे चले गये थे। उसी समय यह परिवार भी आगरा की तरफ कूच कर गया। नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि आगरा जाते समय उनके दादा गंगाधर को अंग्रेजों ने रोककर पूछताछ की थी लेकिन तब गंगाधर ने उनसे कहा था कि वे मुसलमान नहीं हैं कश्मीरी पंडित हैं और अंग्रेजों ने उन्हें आगरा जाने दिया बाकी तो इतिहास है ही। 

यह धर उपनाम कश्मीरी पंडितों में आमतौर पाया जाता है और इसी का अपभ्रंश होते-होते और धर्मान्तरण होते-होते यह दर या डार हो गया जो कि कश्मीर के अविभाजित हिस्से में आमतौर पाया जाने वाला नाम है। लेकिन मोतीलाल ने नेहरू उपनाम चुना ताकि यह पूरी तरह से हिन्दू सा लगे। इतने पीछे से शुरुआत करने का मकसद सिर्फ यही है कि हमें पता चले कि खानदानी लोगों कि असलियत क्या होती है।


और इस प्रकार से दिनेश चन्द्र जी मामले की तह में उतरते जा रहे थे जहाँ एक से बढ़कर एक चौंकाने वाला इतिहास खुलकर सामने आ रहा था कि कैसे एक गैर हिन्दू परिवार ने अपने आपको हिन्दू सवर्ण परिवार में परिवर्तित कर डाला और देश के सीने पर सवार होने की जोड़-तोड़ में लग गया।

आनंद भवन नहीं इशरत मंजिल: एक कप चाय खत्म हो गयी थी, दूसरी का आर्डर हाफीजा ने देते हुए के एन प्राण कि पुस्तक द नेहरू डायनेस्टी निकालने के बाद एक पन्ने को पढऩे को दिया। 


उसके अनुसार जवाहरलाल मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर। यह तो हम जानते ही हैं कि जवाहरलाल की एक पुत्री थी इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू । कमला नेहरू उनकी माता का नाम था। जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी। 

कमला शुरु से ही इन्दिरा के फिरोज से विवाह के खिलाफ थीं क्यों यह हमें नहीं बताया जाता। 

लेकिन यह फिरोज गाँधी कौन था?

 फिरोज उस व्यापारी के बेटे थे जो आनन्द भवन में घरेलू सामान और शराब पहुँचाने का काम करता था। 

आनन्द भवन का असली नाम था इशरत मंजिल और उसके मालिक थे मुबारक अली। 

मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं मुबारक अली के यहाँ काम करते थे। 

सभी जानते हैं की राजीव गाँधी के नाना का नाम था जवाहरलाल नेहरू लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी तो होते हैं। फिर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था? 

किसी को मालूम नहीं, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब खान। 

एक मुस्लिम व्यापारी जो आनन्द भवन में सामान सप्लाई करता था और जिसका मूल निवास था जूनागढ गुजरात में। 

नवाब खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया। फिरोज इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था घांदी (गाँधी नहीं) घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था। 

विवाह से पहले फिरोज गाँधी ना होकर फिरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था। हमें बताया जाता है कि फिरोज गाँधी पहले पारसी थे यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है। 

इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं। शांति निकेतन में पढ़ते वक्त ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया था। 

अब आप खुद ही सोचिये एक तन्हा जवान लडक़ी जिसके पिता राजनीति में पूरी तरह से व्यस्त और माँ लगभग मृत्यु शैया पर पड़ी हुई हों थोड़ी सी सहानुभूति मात्र से क्यों ना पिघलेगी?

इंदिरा गांधी या मैमूना बेगम: इसी बात का फायदा फिरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फुसलाकर उसका धर्म परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली। 

नाम रखा मैमूना बेगम। 

नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए लेकिन अब क्या किया जा सकता था। 

जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने नेहरू को बुलाकर समझाया। राजनैतिक छवि की खातिर फिरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी रख ले, यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये बजाय धर्म बदलने के सिर्फ नाम बदला जाये तो फिरोज खान घांदी बन गये फिरोज गाँधी। 

विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और सत्य के साथ मेरे प्रयोग नामक आत्मकथा लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक नहीं नहीं किया। 

खैर, उन दोनों फिरोज और इन्दिरा को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुन: वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया ताकि उनके खानदान की ऊँची नाक का भ्रम बना रहे। 

इस बारे में नेहरू के सेकेरेटरी एम.ओ. मथाई अपनी पुस्तक प्रेमेनिसेन्सेस ऑफ नेहरू एज (पृष्ठ 94 पैरा 2 (अब भारत में प्रतिबंधित है किताब) में लिखते हैं कि पता नहीं क्यों नेहरू ने सन 1942 में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी जबकि उस समय यह अवैधानिक था का कानूनी रूप से उसे सिविल मैरिज होना चाहिये था । 

यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फि रोज अलग हो गये थे हालाँकि तलाक नहीं हुआ था। फिरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे। तंग आकर नेहरू ने फिरोज के तीन मूर्ति भवन मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। 

मथाई लिखते हैं फिरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बड़ी राहत मिली थी। 1960 में फिरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी जबकी वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे।


संजय गांधी और इंदिरा: संजय गाँधी का असली नाम दरअसल संजीव गाँधी था अपने बडे भाई राजीव गाँधी से मिलता जुलता । लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था। 

ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने तब मदद करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवाया था, इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था। 

अफवाहें यह भी है कि संजय गांधी इंदिरा गांधी के उनके सचिव युनुस खान से संबंधों के सच थे यह बात संजय गांधी को पता थी। अब संयोग पर संयोग देखिये संजय गाँधी का विवाह मेनका आनन्द से हुआ। 

कहा जाता है मेनका जो कि एक सिख लड़की थी संजय की रंगरेलियों की वजह से उनके पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान से मारने की धमकी दी थी फिर उनकी शादी हुई और मेनका का नाम बदलकर मानेका किया गया क्योंकि इन्दिरा गाँधी को यह नाम पसन्द नहीं था। 

फिर भी मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं क्योंकि उस जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये सिर्फ एक तौलिये में विज्ञापन किया था। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि संजय गाँधी अपनी माँ को ब्लैकमेल करते थे और जिसके कारण उनके सभी बुरे कामो पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला और उसे अपनी मनमानी करने कि छूट दी।

सन्यासिन का सच: एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक के पृष्ठ 206 पर लिखते हैं - 1948 में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था। 

वह संस्कृत की विद्वान थी और कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे। 

वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृत की अच्छी जानकार थी। नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी. उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए। 

चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और काम बहुत था। नेहरू ने अधिकतर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये। मथाई के शब्दों में एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा वह बहुत ही जवान खूबसूरत और दिलकश थी। 

एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये नेहरू ने भी उसे उत्तर दिया और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं किसी के ढूँढे से नहीं मिलीं।

नवम्बर 1949 में बेंगलूर के एक कान्वेंट से एक सुदर्शन सा आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया। 

उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस कान्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया। उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी। 

उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं पत्रों का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया। मथाई लिखते हैं। मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफी कोशिश की लेकिन कान्वेंट की मुख्य मिस्ट्रेस जो कि एक विदेशी महिला थी बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं क हा लेकिन मेरी इच्छा थी कि उस बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कथोलिक संस्कारो में बड़ा करूँ चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना हो लेकिन विधाता को यह मंजूर नहीं था। 

नेहरू राजवंश की कुंडली जानने के बाद घड़ी की तरफ देखा तो शाम पांच बज गए थे, हाफीजा से मिली ढेरों प्रमाणिक जानकारी के लिए शुक्रिया अदा करना दोस्ती के वसूल के खिलाफ था, इसलिए फिर मिलते हैं कहकर चल दिए।


नोट--(दिनेश चंद्र मिश्र लखनऊ में रहनेवाले पत्रकार हैं। यह खोजबीन उन्होंने अपनी कश्मीर यात्रा के दौरान की है जिसे वे क्रमश: अपने ब्लाग पर प्रकाशित कर रहे हैं।)

कुछ अन्य बातें जो जानने योग्य हैं - सन्दर्भ सहित :-

अब ज़रा इस परिवार के बहुत ही ज्यादा आदरणीय लोगो के चरित्र पर प्रकाश डालता हूँ भारतीय सिविल सेवा के एम ओ मथाई जिन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निजी सचिव के रूप में भी कार्य किया. मथाई जी ने एक पुस्तक “Reminiscences of the Nehru Age”(ISBN-13: 9780706906219) ‘लिखी। 

किताब से पता चलता है कि वहाँ जवाहर लाल नेहरू और माउंटबेटन एडविना 
(भारत, लुईस माउंटबेटन को अंतिम वायसराय की पत्नी) के बीच गहन प्रेम प्रसंग था।

ये प्रेम सम्बंद इंदिरा गांधी के लिए महान शर्मिंदगी का एक स्रोत था। 

इंदिरा गाँधी अपने पिता जवाहर लाल नेहरु को इस सम्बंद के बारे में समझाने हेतु मोलाना अबुल कलाम आज़ाद कि मदद लिया करती थी। 

यही नहीं, जवाहर लाल का सरोजिनी नायडू की पुत्री पद्मजा नायडू के साथ भी प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिसे बंगाल के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था। 

इस बात का खुलासा भी हुआ है कि जवाहर लाल नेहरु अपने कमरे में पद्मजा नायडू की तस्वीर रखते थे जिसे इंदिरा गाँधी हटा दिया करती थी।

इन घटनाओं के कारण पिता-पुत्री के रिश्ते तनाव से भरे रहते थे। उपरोक्त सम्बन्धों के अतिरिक्त भी जवाहर लाल नेहरु के जीवन में बहुत सी अन्य महिलाओं से नाजायज़ ताल्लुकात रहे हैं। 

एस. सी. भट्ट की एक पुस्तक 
“The great divide: Muslim separatism and partition” (ISBN-13:9788121205917) के अनुसार –जवाहरलाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी अपने पिता के कर्मचारी सयुद हुसैन के साथ भाग गई। तो मोतीलाल नेहरू जबरदस्ती उसे वापस ले आया और एक रंजीत पंडित नाम के एक आदमी के साथ उसकी शादी कर दी। 

इंदिरा प्रियदर्शिनी को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था लेकिन वहां से बेकार प्रदर्शन के लिए बाहर निकाल दिया गया। 

“The Nehru Dynasty” (ISBN 10:8186092005) किताब में जे. एन. राव कहते हैं कि इंदिरा गाँधी (श्रीमती फिरोज खान) का जो दूसरा बेटा था, संजय गाँधी वो फिरोज खान कि औलाद नहीं था। 

बल्कि वो एक दुसरे महानुभाव मोहम्मद युनुस के साथ अवैध संबंधों के चलते हुए था। 

जब संजय गाँधी की प्लेन दुर्घटना में मौत हुई तब मोहम्मद युनुस ही सबसे ज्यादा रोया था। 

युनुस की लिखी एक किताब “Persons, Passions & Politics” (ISBN-10: 0706910176) से साफ़ पता चलता है कि बचपन में संजय गाँधी का मुस्लिम रीती रिवाज के अनुसार खतना किया गया था। 

(खतना-जिसमे उनके लिंग के आगे के कुछ भाग को थोडा सा काट दिया जाता है!)

यह सच है कि संजय गांधी लगातार अपनी मां इंदिरा गांधी को अपने असली पिता के नाम पर ब्लैकमेल किया करता था। 

संजय का अपनी माँ पर पर गहरा भावनात्मक नियंत्रण था जिसका संजय ने जमकर दुरूपयोग किया। 

इंदिरा गांधी भी उसकी इन सब बातों (कुकर्मों) को नजरअंदाज करती रही और संजय परोक्ष रूप से सरकार नियंत्रित किया करता था।

एक माँ की ममत्व के लिए कलंकित एक उदाहरण — जब संजय गाँधी कि प्लेन दुर्घटना में उसकी मौत कि खबर इंदिरा गाँधी तक पहुंची तो इंदिरा गाँधी के पहले बोल थे- उसकी घडी और चाबियाँ कहाँ है ?

अवस्य ही उन वस्तुवों में भी इस खानदान के कुछ राज छुपे हुए होंगे।

एक बात और, संजय गाँधी कि प्लेन दुर्घटना भी पूर्ण रूप से रहस्यमय थी। 

संजय गांधी का प्लेन गोता लगाते हुए बिना किसी चीज से टकराए क्रेश हो गया। ऐसा सिर्फ उस स्थिति में होता है जब विमान में इंधन ख़तम हो जाये। 

लेकिन उस समय का उड़ान रजिस्टर बताता है कि उड़ने से पहले ही टेंक पूरा भरा गया था। 

और बाद में इंदिरा गाँधी ने अपने प्रभाव का इन्स्तेमाल करते हुए जाँच निशिद्द करदी!

अब संदेह होना लाजमी है या नहीं?

दुबारा से श्रीमती इंदिरा गाँधी के प्यार के किस्सों पर आते हैं। 

केथरीन फ्रेंक की एक किताब “The Life of Indira Nehru Gandhi” (ISBN: 9780007259304) में इंदिरा गाँधी के कुछ दुसरे प्यार के किस्से उजागर होते हैं!

ये लिखा गया है कि इंदिरा गाँधी का पहला चक्कर पहली बार अपने जर्मन के अध्यापक के साथ चला था।

बाद में अपने बाप जवाहर लाल के सेक्रेट्री एम् ओ मैथई के साथ भी उसका प्रेम परवान चढ़ा।

फिर अपने योग के अध्यापक धीरेन्द्र ब्रह्मचारी और उसके बाद विदेश मंत्री दिनेश सिंह के साथ इनका प्रेम परवान चढ़ा। 

पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपनी पुस्तक “Profile and Letters” (ISBN: 8129102358) में मुगलों के प्रति इंदिरा गांधी का आदर के संबंध के बारे में एक दिलचस्प रहस्योद्घाटन किया। 

इसमें कहा गया कि जब 1968 में प्रधान मंत्री रहते इंदिरा गाँधी अफगानिस्तान कि अदिकारिक यात्रा पर गयी तब नटवर सिंह उनके साथ एक आई.ऍफ़. एस. अधिकारी के तौर पर गए हुए थे। दिन के सभी कार्यक्रमों के बाद इंदिरा गाँधी सैर के लिए जाना चाहती थी। 

थोड़ी दूर तक कार में चलने के बाद इंदिरा गाँधी ने बाबर कि दफंगाह को देखने कि इच्छा जाहिर की हालाँकि ये उनके कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थी। अफगानी सुरक्षा अधिकारीयों ने भी इंदिरा को ऐसा न करने कि सलाह दी, लेकिन इंदिरा अपनी बात पर अड़ी हुई थी। 

और अंत में इंदिरा उस जगह पर गयी - यह एक सुनसान जगह थी - वह वहां कुछ देर तक अपना सिर श्रदा में झुकाए खड़ी रही। 

नटवर सिंह वहीँ उसके पीछे खड़ा था। जब इंदिरा गाँधी का ये सब पूजा का कार्यक्रम खत्म हुआ तब वो मुड़ी और नटवर सिंह से बोली कि आज वो अपने इतिहास से मिलके आई है।

किसी को अगर समझ न आया हो तो बता दूँ कि बाबर को ही हिंदुस्तान में मुग़ल सल्तनत का संस्थापक माना जाता है, और ये गाँधी नेहरु का ड्रामा उसके बाद ही शुरू हुआ था। 

उच्च शिक्षा के कितने संस्थानों के नाम इस परिवार और इनके चापलूसों ने राजीव गाँधी के नाम पर रख दिए, इसकी गिनती करना तो बहुत मुश्किल काम है। 

लेकिन अपने जीवन में राजीव गाँधी खुद एक कम क्षमताऔर पढ़ाई कमज़ोर था। 

1962 से 1965तक उसने ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में एक यांत्रिक अभियांत्रिकी पाठ्यक्रम के लिए दाखिला लिया था। 

लेकिन उसने डिग्री के बिना कैम्ब्रिज छोड़ दिया क्योंकि वह परीक्षा पास नहीं कर सका। 

1966 में अगले वर्ष, वह इंपीरियल कॉलेज, लंदन में दाखिल हुआ , लेकिन फिर से डिग्री के बिना छोड़ दिया। 

के.एन. राव ने अपनी पुस्तक में साफ़ कहा कि राजीव गांधी सानिया मैनो से शादी करने के लिए एक कैथोलिक बन गया। 


और उसका नाम रखा गया रॉबर्टो। 

उसके बेटे का नाम RAUL है और बेटी का नाम BIANCA है।

काफी चतुराई से ही नाम राहुल और प्रियंका के रूप में भारत के लोगों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। 

व्यक्तिगत आचरण में राजीव बहुत ज्यादा एक मुगल की ही तरह था। 



राजीव की हत्या में सोनिया की भागीदारी के लिए एक जांच की जानी चाहिए।

विस्तार से जानने के लिए आप डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी की पुस्तक “Assassination Of Rajiv Gandhi — Unasked Questions and Unanswered Queries” (ISBN : 81-220-0591-8) पढ़ सकते हैं। 

यह इस तरह के षड्यंत्र का संकेत करती है!

http://50.30.37.168/blog/view/id/50f2eaa254c8811f5a000048 से साभार उद्धृत 


क्रमशः ...... 

4 comments:

  1. वाह.वाह वाह ,सही इतिहास तो अब सामने आ रहा है, धन्यवाद सिंह जी

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  2. ये हक़ीक़त सारे हिन्दुस्तान के सामने आनी ही चाहिये। इतिहास को इसलिए काँग्रेस ने तोड़ मरोड़कर पेश किया। बहुत ही उम्दा जानकारी।

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  3. ये हक़ीक़त सारे हिन्दुस्तान के सामने आनी ही चाहिये। इतिहास को इसलिए काँग्रेस ने तोड़ मरोड़कर पेश किया। बहुत ही उम्दा जानकारी।

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