Wednesday, November 4, 2015

।।कुलदेवी साधना।। - Kuldevi Sadhna / Kuleshwari Sadhna - ।। कुलेश्वरी साधना ।।

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।।कुलदेवी साधना।।
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जय मातेश्वरी 




मित्रगण एवं गुरुजनों


जैसा कि अभी हम अपनी पूर्व चर्चा में इस सम्बन्ध में थोडी बहुत बात कर चुके हैं एवं किसी वजह से हम इस साधना को वर्ष में एक बार हर उस व्यक्ति के लिए बाध्यकारी बना देना चाहते हैं जो किसी भी रूप में हमसे जुड़ा हो। आप सबमे से बहुत से लोग संभव है कि ये सोचें कि हो ना हो इस साधना को करवाने में इसका अपना कोई लाभ होगा !

अवश्य ही आप सही सोचते हैं मेरा बहुत बड़ा लाभ है इस साधना को बाध्यकारी बनाने के पीछे जो मैं बिन्दुवत नीचे दे रहा हूँ :

  1. आप सब इस साधना से आध्यात्मिक - आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सुदृढ़ होंगे।
  2. जब आप सब सुदृढ़ होंगे तो जगह-जगह भटकने से मुक्ति मिलेगी। 
  3. अगर बेवजह की भौतिक समस्यायों से मुक्त रहेंगे तो प्रभु या इष्ट की भक्ति करने के लिए पर्याप्त समय उपलब्ध हो सकेगा। 
  4. आपकी की गयी साधनाओं की वजह से आपकी आने वाली पीढ़ियां भी सुख-शांति का जीवन बिता सकेंगी। 
  5. आपकी आने वाली पीढ़ियों में कम से कम एक व्यक्ति भक्त या साधक अवश्य ही निकलेगा जो कि किसी कुल के लिए बड़े सौभाग्य की बात होती है। 
  6. यदि आप पूर्व से ही साधनात्मक क्षेत्र में हैं तो निश्चित ही आपको आपकी साधनाओं के परिणाम पहले से अच्छे और जल्दी मिलेंगे। 
  7. यदि आपके इष्ट और कुलदेवी दोनों एक ही हैं तो फिर तो सोने पे सुहागा और आपका मोक्ष मार्ग प्रशस्त है यदि सब कुछ ठीक रहे तो। 
  8. यदि ग्रहों और नक्षत्रों के वक्री होने की पीड़ा आप झेल रहे हैं तो उससे मुक्ति भी इस साधना से संभव है। 
  9. किसी भी प्रकार की परा या अपरा समस्या से यदि आप जूझ रहे हैं तो निश्चित ही यह साधना आपके लिए है।

  1. कुलदेवी शब्द का सर्वप्रथम अर्थ समझ लेना बहुत उपयुक्त होगा - कि आखिर ये हैं क्या और क्यों हैं ? 
  2. इनकी उपादेयता क्या है हमारे जीवन में ?
  3. क्या इनको खुश रखने के लिए साधना और प्रार्थना जरुरी है ?
  4. जब ये हमारे कुल की देवी हैं तो फिर ये हमे कष्टों में क्यों रहने देती हैं ?

कुल अर्थात वंश बेल पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली क्रमिक श्रंखला है जो आदि काल से चलते आ रहे हैं। जिस तरह प्रत्येक परिवार का एक मुखिया होता है जिसकी जिम्मेवारी होती है कि किसी भी दशा में परिवार की रक्षा एवं भरण-पोषण की व्यवस्था करते हुए किसी सदस्य द्वारा भूल अथवा गलती करने पर सजा देने का अधिकृत पद होता है - मुखिया के द्वारा दिए गए दंड की कहीं कोई अपील नहीं हो सकती ( आधुनिक न्यायिक विधान को न्यायिक प्रणाली की तरह स्वीकार नहीं करता मैं उसे बस एक व्यवसाय एवं भाई-भतीजावाद के वृक्ष से अधिक नहीं माना जा सकता )

उसी प्रकार कुलदेवी भी किसी कुल की सर्वोच्च स्वामिनी होती हैं जिन पर उस कुल के सदस्यों की देखभाल और उनके सामाजिक-आर्थिक-आध्यात्मिक सन्दर्भों का पूरा दारोमदार होता है तथा किसी प्रकार के गलत कार्य हेतु दण्डित करने विधान भी निहित होता है - वस्तुतः कुलदेवी दैविक जगत से एवं भौतिक जगत के मध्य एक सेतु की तरह होती हैं जिस पर विश्वास करके कोई भी पार जा सकता है।

अगर हम अपने पौराणिक जगत का सन्दर्भ दें या फिर आर्यकालीन संस्कृति का विवेचन करें तो पाएंगे कि पूर्व में कोई भी कृत्य (जन्म से लेकर मरण तक ) बिना कुछ सन्दर्भों के कभी संभव ना थी - जैसे कुल अथवा गोत्र की जानकारी - द्वीप की जानकारी - संवत्सर की जानकारी - कुलदेवी की जानकारी - दिवस-पक्ष आदि की जानकारी - वैदिक संस्कृति का कोई भी विधान बिना संकल्प के पूरा नहीं होता और संकल्प वास्तव में आपके पते के साथ आपकी मनोकामना को दैविक विधि से देवों के समक्ष व्यक्त करने की एक प्रक्रिया है।

किन्तु आज के युग के आते-आते हम सब उस दुनिया में जा पहुंचे हैं जहाँ दूसरों के सम्बन्ध में जानने के चक्कर खुद को ही भूल गए - याद तब आती है कि हम भी हैं जब कोई दुःख की घडी आती है तब ईश्वर पक्षपाती - बेईमान और अन्यायी हो जाता है और इंसान खुद को अबोध-असहाय एवं प्रताड़ित महसूस करता है लेकिन फिर भी उसे इस बात का ज्ञान नहीं होता कि जब वह ईश्वर को जानता ही नहीं तो फिर ईश्वर दोषी कैसे हो गया ?

तो विषय को पुनः समेटते हुए कहूँगा कि जिस प्रकार आप या हम यदि अपने घर से दूर चले जाएँ और घर के मुखिया से कोई संपर्क स्थापित ना करें तो शनैः शनैः मुखिया भी हमसे उदासीन हो ही जायेंगे - और जैसा कि पूर्व में भी मैं कह चूका हूँ की भौतिक एवं आध्यात्मिक अर्थात दैविक जगत का सेतु कुलदेवी ही हैं - बिना उनकी अनुमति या इच्छा के देव तो क्या भुत-प्रेत जैसी तुच्छ योनियाँ भी हमारी सहयोगी नहीं हो सकती हैं।

बहुत बार आप सब देखते होंगे कि बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति साधनाओं में लगता है वर्षों मेहनत करता है किन्तु कुछ हाथ नहीं लगता - वही मन्त्र वही विधान वह किसी और को बता दे और वह करने लगे तो कुछ ही दिनों में दूसरा व्यक्ति बहुत आगे निकल जाता है - आखिर ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं दूसरे में जो पहले के पास नहीं थे ?

सारे गृह-नक्षत्र और आपके आस-पास का पर्यावरण आपकी सफलता और असफलता की अनुमति जब तक आपके परिवार के मुखिया से नहीं लेगी तब तक आपके पास वह पहुँच ही नहीं सकते यह जान लीजिये अब यदि आपका मुखिया प्रसन्न है तो गलतियां करके भी आप सफलता के सोपान चढ़ते चले जाते हैं - यदि मुखिया उदासीन हुआ तो आपको बहुत कुछ मिलता है आपकी योग्यता से कभी काम कभी अधिक कभी विपरीत प्रत्युत्तर भी आते हैं - किन्तु यदि रुष्ट हो मुखिया तब तो अल्ला ही अल्ला - मौला ही मौला - कुछ भी कर लो बाबा दीवार रोटी खा जाएगी चींटी बाल्टी का पानी पी जाएगी लेकिन आपके सामने होते हुए भी आपको नहीं मिलेगा -!

इंसान अपने जन्म के साथ बहुत से ऋण और पूर्व जन्मो के कर्मभोग लेकर उत्पन्न होता है जिन्हे चुकाते और पुनः कमाते उसका जीवन बीत जाता है और यह अनवरत क्रम चलता ही रहता है जब तक भुवनमोहिनी खुद आपको मुक्त करने को राजी ना हो जाये - ब्रह्म चाहता है कि आप शीघ्र खेल का निस्तारण कर उस तक पहुंचे इसीलिए उसने माया की अधिष्ठात्री को हम सबके कुलों के साथ किसी ना किसी नाम और रूप से साथ जोड़ दिया ताकि हम उस सेतु का उचित उपयोग कर जल्दी वापस घर लौट जाएँ लेकिन घर कहाँ है ? कैसे जाना है ? कौन पहुंचाएगा यह भूल गए।

एक दृष्टांत है :-
एक बार एक लकड़हारा जंगल गया वहां उस दिन मौसम ख़राब हो गया और निकलने की कोई सूरत ना देख एक गुफा में पहुंचा और वहीँ सो गया। सोने के बाद क्या देखता है कि किसी बहुत ही सुन्दर से देश का राजा है वह और बहुत ही सुन्दर-सुन्दर रानियां हैं उसके महल में और वह उन सबके साथ बहुत सुखी जीवन गुजार रहा है - और फिर एक दिन राजमहल में आग लगी जिसमे रानी-वैभव और सब जलकर खाक हो गया - घबराकर उठा और देखा कि वह तो लकड़हारा है और गुफा में सो रहा है लेकिन फिर भी उसे रोना आया और वह रोया भी - बारिश बंद हुयी और वह घर चला - बस्ती से बाहर पहुंचा तो देखा कि कुछ लोग किसी की अर्थी को चिता में रख रहे हैं और उसके परिजनों की रोने-चिल्लाने की आवाजें आ रही हैं - उधर ही चला गया तो क्या देखता है कि उसकी बस्ती के ब्राह्मण देवता जो स्वयं को परमहंस कहते थे और जगत को स्वप्नवत मिथ्या कहते थे उनके पुत्र की मृत्यु हुई है और आज वे विकल पड़े हैं ऐसा देख लकड़हारे को अपना स्वप्न याद हो आया और वह भी दहाड़ें मारकर रोने लग गया - पंडित जी को लगा कि उनके पुत्र से अच्छी मित्रता रही होगी सो सांत्वना देने और लेने हेतु लकड़हारे के पास आये।

बड़ी दुखी आवाज में बोले क्यों रोता है ? जो होना था सो हो गया।

"सच कहा आपने - जो होना था वह हो गया लेकिन उस वैभव को अब कहाँ से लाऊँ "ऐसा कह लकड़हारा फिर रोने लगा।

पंडित जी चमक गए - कौन से वैभव की बात कर रहा है ये मुर्ख लकड़हारा - लेकिन मेरे पुत्र के शोक में तो नहीं रो रहा यह पक्का - ऐसा विचार कर ब्राह्मण देवता ने लकड़हारे से पूछा "कौन सा वैभव और कैसा वैभव "?

लकड़हारे ने सारा वृत्तांत बताया यह सुन दुःखी ब्राह्मण देवता के अधरों पर क्षण भर के लिए मुस्कान आ गयी और वह बोले "मुर्ख लकड़हारे तू तो बहुत ही मंद बुद्धि है - एक स्वप्न देखा और उस स्वप्न के लिए अभी तक रो रहा है तू तो लकड़हारा था और अभी भी लकड़हारा ही है "?

लकड़हारे ने उत्तर दिया "महाराज स्वप्न तो स्वप्न ही होता है चाहे कुछ पल का हो या कुछ वर्ष का - यदि आप अपने पुत्र के शोक में शोकातुर हो सकते हैं तो मैं राजा क्यों नहीं हो सकता ? यदि मेरा राजा होने का स्वप्न झूठा था तो आपका पुत्र मृत्यु का शोक झूठा क्यों नहीं हो सकता ? जबकि आप तो स्वयं ही कहते हैं जगत मिथ्या-स्वप्नवत "

तो कहने का अर्थ ये कि सब भूल बैठे वह भी भूल गया जो कहता है कि वह नहीं भुला - वह भी भूल बैठा जिसे कभी याद ही ना था -!

तो कम से कम दूसरों का ना सही अपना घर तो सम्हाल लो - यदि तुम बदल गए और मैं बदल गया तो दुनिया है ही कितनी बड़ी आज तुम और मैं बदल गए अगले दिन दुनिया वैसी ही नजर आएगी जैसे हम होंगे।



सामग्री :-
३ पानी वाले नारियल
सवा मीटर लाल वस्त्र
९ सुपारियां
श्रंगार की सामग्री
पान के ९ पत्ते
३ घी के दीपक
कुंकुम
हल्दी
सिंदूर
मौली
तीन रंग के चावल जो क्रमशः सिन्दूर, कुंकुम, और हल्दी से रंग लें
मिठाई तीन प्रकार की

साधना विधि :-

सर्वप्रथम नारियल कि कुछ जटाये निकाले और कुछ बाकि रखे फिर एक नारियल को सिंदूर से
दूसरे को हल्दी
और तीसरे नारियल को कुंकुम से रंग दें।

फिर तीनों नारियल को मौली बांधे
किसी बाजोट ( लकड़ी का आसन जिस पर मूर्ति या नारियल रखे जायेंगे जिसे चौकी भी कहते हैं उस पर लाल वस्त्र बिछायें और उसके ऊपर कुछ चावल बिछा दें जैसे सिंदूरी नारियल के नीचे सिंदूरी चावल, पीले नारियल के नीचे पीले चावल और कुंकुमी नारियल के नीचे कुंकुमी चावल , उस पर तीनों नारियल को स्थापित करें ,
हर नारियल के सामने ३ पान के पत्ते रखे,
पत्तों पर १-१ सिक्का (द्रव्य) रखे और सिक्के के ऊपर सुपारियां स्थापित कीजिये तत्पश्चात फिर गुरुपूजन और गणपति पूजन संपन्न कीजिये.

गुरुपूजन :- पंचोपचार पूजन 
१. ॐ गुं गुरुभ्यो गंधम समर्पयामि ( कहकर गुरु देव को गंध समर्पित करें )
२. ॐ गुं गुरुभ्यो पुष्पम समर्पयामि ( कहकर गुरु देव को पुष्प समर्पित करें )
३. ॐ गुं गुरुभ्यो कुंकुमं समर्पयामि ( कहकर गुरु देव को कुंकुम समर्पित करें )
३. ॐ गुं गुरुभ्यो धूपं घ्रापयामी ( कहकर गुरु देव को धुप या अगरबत्ती समर्पित करें )
४. ॐ गुं गुरुभ्यो दीपं समर्पयामि ( कहकर गुरु देव को दीपक समर्पित करें )
५. ॐ गुं गुरुभ्यो नैवेद्यं समर्पयामि ( कहकर गुरु देव को नैवेद्य समर्पित करें )
६. ॐ गुं गुरुभ्यो ताम्बूलं समर्पयामि ( कहकर गुरु देव को ताम्बूल (पान ) समर्पित करें )

तदुपरांत गणपति पूजन करें

गणपति पूजन :- पंचोपचार पूजन 

१. ॐ गं गणपतये गंधम समर्पयामि ( कहकर गणपति देव को गंध समर्पित करें )
२. ॐ गं गणपतये पुष्पम समर्पयामि ( कहकर गणपति देव को पुष्प समर्पित करें )
३. ॐ गं गणपतये हरिद्रां समर्पयामि ( कहकर गणपति देव को हल्दी समर्पित करें )
३. ॐ गं गणपतये धूपं घ्रापयामी ( कहकर गणपति देव को धुप या अगरबत्ती समर्पित करें )
४. ॐ गं गणपतये दीपं समर्पयामि ( कहकर गणपति देव को दीपक समर्पित करें )
५. ॐ गं गणपतये नैवेद्यं समर्पयामि ( कहकर गणपति देव को नैवेद्य समर्पित करें )
६. ॐ गं गणपतये ताम्बूलं समर्पयामि ( कहकर गणपति देव को ताम्बूल (पान ) समर्पित करें )

कुलदेवी पूजन :- पंचोपचार पूजन 

१. ॐ ह्रीं कुलदेव्यै गंधम समर्पयामि ( कहकर कुलदेवी को गंध समर्पित करें )
२. ॐ ह्रीं कुलदेव्यै पुष्पम समर्पयामि ( कहकर कुलदेवी को पुष्प समर्पित करें )
३. ॐ ह्रीं कुलदेव्यै सिन्दूरं समर्पयामि ( कहकर कुलदेवी को सिंदूर समर्पित करें )
३. ॐ ह्रीं कुलदेव्यै धूपं घ्रापयामी ( कहकर कुलदेवी को धुप या अगरबत्ती समर्पित करें )
४. ॐ ह्रीं कुलदेव्यै दीपं समर्पयामि ( कहकर कुलदेवी को दीपक समर्पित करें )
५. ॐ ह्रीं कुलदेव्यै नैवेद्यं समर्पयामि ( कहकर कुलदेवी को नैवेद्य समर्पित करें )
६. ॐ ह्रीं कुलदेव्यै ताम्बूलं समर्पयामि ( कहकर कुलदेवी को ताम्बूल (पान ) समर्पित करें )

ध्यान रखें कि कुंकुम से रंगा हुआ नारियल गुरु का प्रतीक होगा, हल्दी से रंगा हुआ नारियल गणपति का प्रतीक होगा एवं सिंदूर से रंगा हुआ नारियल कुलदेवी का प्रतिनिधित्व करेगा।

अस्तु कुंकुम से रंगे हुए नारियल में सिर्फ कुंकुम ही चढ़ेगा एवं हल्दी से रंगे नारियल में सिर्फ हल्दी तथा सिंदूर से रंगे हुए नारियल में सिर्फ सिंदूर।

मिठाई कोई सी भी किसी भी नारियल के सामने चढ़ाई जा सकती है इसी प्रकार दीपक भी प्रत्येक नारियल के सामने एक जलाना है जो कि आप पंचोपचार में जला चुके हैं। श्रंगार की सामग्री सिंदूर से रंगे हुए नारियल के सम्मुख यह भावना करते हुए समर्पित कर देनी है कि आप माँ (कुलदेवी) को यह समर्पित कर रहे हैं और उसी की कृपा से आपको यह अनुष्ठान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है तथा माँ आपके द्वारा समर्पित प्रत्येक वस्तु को स्वीकार करके आपको आशीष दे रही है - वैसे तो निर्विकार भाव से इस आराधना को करें क्योंकि माँ सब कुछ जानती है उससे कहने की आवश्यकता नहीं होती - किन्तु फिर भी यदि आपका मन ना माने तो अपनी मनोकामना व्यक्त कर सकते हैं संकल्प के माध्यम से ।

सारी प्रक्रिया पूर्ण करने के पश्चात लाल मूंगे की माला से निम्न मन्त्र का ११ माला जप करें।

|| ॐ ह्रीं श्रीं कुलेश्वरी प्रसीद-प्रसीद ऐं नम : ||

माला जप पूर्ण होने के बाद आचमन करवाकर अपनी ज्ञात अज्ञात गलतियों के लिए माँ से क्षमा मांग लें एवं प्रथम दिन की पूजा संपन्न करें उपरोक्त सभी क्रम अगले दिन पुनः दोहराएं और प्रथम दिन की तरह सभी क्रियाएँ संपन्न करें। इस प्रकार से यह विधान तीन दिन तक करें तीसरे दिन आपकी यह साधना संपन्न हो जाएगी। बहुत से मित्रों को कुछ अलौकिक अनुभव भी हो सकते हैं और बहुत से लोगों को कुछ भी अनुभव ना हों यह भी संभव है - इस विषय पर बस इतना समझ लें कि शीघ्र ही मिलेगा बहुत कुछ लेकिन मोल-भाव से नहीं मिलेगा बल्कि कृपा से मिलेगा। इसलिए कर्म करना है फल तो मिलेगा ही आज नहीं तो कल।

३ दिन बाद सारी सामग्री जल मे परिवार के कल्याण कि प्रार्थना करते हुये प्रवाहित कर दे.

नोट :- किसी भी प्रकार की समस्या या स्पष्टीकरण हेतु कृपया ईमेल आईडी (rk.singh.fb@gmail.com) पर संपर्क करें। 

माता महाकाली शरणम् 

1 comment:

  1. Kuldevi is the first supreme power for any house hold and bless of MAA is very important to get success in life
    Regards
    Kuldeep Kumar
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