Monday, January 20, 2014

बर्ह्मचर्य - Brahmcharya


बर्ह्मचर्य







बहुत सुनते आये हैं कि ब्रह्मचर्य एक ऐसी विधा है जिसका पालन करने से शरीर हष्ट पुष्ट रहता है ... बहुत सी बीमारियां तो ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों के पास भी नहीं फटकती हैं ... और साधना कि दुनिया में तो इसका खाश महत्व है ... ऐसी कोई भी साधना का मार्गदर्शन मैंने आज तक नहीं देखा जहाँ यह न कहा जाता हो कि ब्रह्मचर्य   एवं इन्द्रिय संयम अति आवश्यक है इसके आभाव में सफलता कि कामना न करें ...!

तो आखिर ये ब्रह्मचर्य होता क्या है ..?

वस्तुतः ब्रह्मचर्य का सीधा सा अर्थ हमारे समाज में सम्भोग के साथ लगाया जाता है .... और सोचा जाता है कि यदि साधना काल में हमने खुद को सम्भोग से बचा लिया तो ब्रह्मचर्य पूरा हो गया और अब साधना कि सफलता से अब कोई नहीं रोक सकता ...!

लेकिन मैं कहता हूँ कि आप गलत हैं .... ब्रह्मचर्य का मतलब यह कटाई नहीं है ...!

हमारे साहित्य में तीन भावनाएं उल्लेखित हैं ..
१. मनसा
२. वाचा
३. कर्मणा

और इन तीनो पर नियंत्रण के बाद ही पूर्ण ब्रह्मचर्य सम्भव है .!

अ . जैसे कि यदि आप अपने आपको सम्भोग क्रिया से तो बचा लेते हैं लकिन मानसिक रूप से आप किसी युवती के बारे में सोचते हैं तो आपका ब्रह्मचर्य खंडित हो जाता है .
ब . आप ने खुद को सम्भोग से बचा लिया इसके बाद आपने किसी युवती के बारे में सोचने से भी बचा लिया किन्तु आपने किसी को अपशब्द प्रयोग किये या कुछ गलत बोल दिया तो भी आपका ब्रह्मचर्य भंग हो गया .
स . यदि आपने अपने आपको मनसा और वाचा से सुरक्षित कर लिया लकिन आप शारीरिक रूप से कहीं आसक्त हो गए तो यहाँ भी आपका ब्रह्मचर्य भंग हो जाता है ...!

ये तो हुआ ब्रह्मचर्य को पालित करने कि बात किन्तु इसकी भी कुछ दशाएं हैं ..!

कई बार परुषों में या स्त्रियों में अप्रत्याशित रूप से स्वप्नदोष हो जाते हैं .... ये भी ब्रह्मचर्य खंडित होने कि श्रेणी में हैं किन्तु यदि सोने से पूर्व किसी विपरीत लिंगी का  ध्यान या चिंतन नहीं किया गया है तो यह ब्रह्मचर्य के खंडन कि श्रेणी में नहीं आता किन्तु यदि यह साधना काल में हुआ है तो इसके लिए प्रायश्चित आवश्यक है ...!

ये तो हुयी ब्रह्मचर्य कि बात किन्तु फिर एक सवाल यह पैदा होता ही कि यदि कोई साधक गृहस्थ आश्रम से है और शादीशुदा है तो क्या करे ?

इस दशा में मानदंडों में कुछ परिवर्तन देखने को मिलते हैं ... यदि साधना काल सवा महीने यानि कि ४० दिन या इससे कम का है तो स्त्री संसर्ग वर्जित है गृहस्थ धर्म में भी किन्तु यदि साधना काल इससे ज्यादा समय का है तो एक सप्ताह में या फिर यदि इससे भी ज्यादा समय जितना आप साध सकें तो उस समय में अधिकतम एक बार आप स्त्री संसर्ग कर सकते हैं और यह ब्रह्मचर्य खंडन कि श्रेणी में नहीं आता है ...!

किन्तु जिन लोगों ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश नहीं किया अर्थात शादी शुदा नहीं हैं .... उनके लिए कोई छूट नहीं है ... !

इसके अतिरिक्त अगर साधना के दृष्टिकोण से बात करें तो नियम मुख्यतया साधना कि विधि जो होती है उसी के हिसाब से निर्धारित होते हैं .... इसलिए यदि आप किसी साधना में रत होना चाहते हैं तो सर्वप्रथम अपने गुरु से जो उस साधना के लिए आपके अग्रज हैं या जिन्होंने आपको साधना प्रदान कि है उनसे परामर्श अवश्य ले लें ... और सारे यम और नियम का पालन उनके आदेशानुसार करें .

यहाँ पर मैंने जिन सिद्धांतों कि चर्चा कि वे सभी सामान्य सिद्धांत कि श्रेणी में आते हैं .... विशेष परिस्थितियों में या देश काल के हिसाब से परिवर्तन स्वीकार्य होता है ... !

क्योंकि वेदों ने भी और पुरानो ने भी एक बात सर्वसहमति से स्वीकार किया है कि किसी भी प्रकार के मतभेद में .... सबसे पहले वहाँ के समाज में प्रचलित रीतिओं का पालन ... इसके बाद भी अगर मतभेद बाकि है तो हमे वहाँ के धर्म गुरुओं से परामर्श करना चाहिए ... इसके बाद भी यदि मतभेद है तो अंत में वैदिक / प्राचीन ग्रन्थ में वर्णित विधि अपनी जनि चाहिए भले ही वह कितनी भी क्लिष्ट हो .

जय माता महाकाली

1 comment:

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