मेरी यात्रा गुडगाँव से [उदयपुर वाटी - खंडेला ( माता चामुंडा मंदिर ) राजस्थान ] - Mata Chamunda Mandir Khandela Rajasthan
अप्रैल २०१३ की बात है ... मेरी एक दोस्त जो की अपनी बहुत सारी पारिवारिक और शारीरिक समस्यायों से जूझ रही थी . साथ ही उसका ये मानना था कि अप्रैल २०१३ में उस पर किसी ने काला जादू या तंत्र मंत्र का प्रयोग करवा दिया था ..... के चलते मैंने उससे वादा किया कि उसकी सारी समस्याओं का समाधान दूंगा मैं उसे ..... वो राजस्थान के जयपुर से सम्बन्ध रखती थी ... और उसका मानना था कि रात्रि में १२ मध्यान्ह के बाद कोई व्यक्ति साक्षात् आकर उसके बिस्तर पर बैठ जाता है और तत्पश्चान उसके शरीर पर हावी हो जाता है .... मैं सोचा कि देखता हूँ क्या बात है और कौन है जो ऐसा करता है जबकि मेरी वह मित्र खुद भी मातृ शक्ति कि उपासिका थी ... इसके बाद भी ऐसी समस्या बहुत मायने रखती है ... मैंने सोचा कि कैसे उस शक्ति से बात करूँ जिससे मुझे ये पता चल सके कि आखिर वह शक्ति है कौन और कितने पानी में है . मैंने अपनी चालें चलनी शुरू की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ .... मैं कोशिश करता और किसी भी वक्त उस ताकत को खींच कर उस मित्र के शरीर पर बुला तो लेता था लेकिन इसके बाद असमर्थ हो जाता ... सिर्फ उसकी तेज सांसे और दर्द से भरी आहें ही मेरे कानो तक पहुँच पाती थी .... उसे बोलने पर मजबूर नहीं कर पा रहा था मैं . आखिर कर उसने ये बात अपने घर वालों को भी बतायी जिसकी वजह से उसके घर वाले उसे किसी हनुमान जी के सिद्ध मंदिर पर ले गए वहाँ के पुजारी जी ने भरसक कोशिश की और उस शक्ति ने वायदा तक कर लिया पुजारी जी से लेकिन सरे वायदे झूठे हो गए वह फिर वापस आ जाता था .... थक हार कर पुजारी जी ने एक महीने के बाद बोल दिया की अब ये मेरे बस की बात नहीं है .... आप कहीं और दिखा लो .... मैं भी मजबूर था क्योंकि मैं उसके सामने नहीं था और किन्ही अपरिहार्य परिश्थिति की वजह मैं भी उस तक नहीं पहुँच सकता था... मैंने थक हार कर उसे सलाह दी की तुम ... मेंहदीपुर बाला जी धाम पहुँचो ... मैं भी वहीँ पहुँच जाउंगा ... इस सारे क्रम में जिस दिन का समय निर्धारित हुआ था उसने सारी तैयारियां कर लीं ... लकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था ..... उससे एक दिन पहले उसके घर के एक सदस्य को बहुत तेज दौरा पड़ा ... आनन् फानन में अस्पताल ले जाया गया जहाँ डॉ. ने परामर्श दिया की इन्हे भर्ती करवाना पड़ेगा अन्यथा कुछ भी हो सकता है यहाँ तक की इनकी जान भी जा सकती है ...! उसका वहाँ पहुंचना अधर में फंस गया लकिन मैं फिर भी तैयार हुआ .. की मैं अकेले ही जाउंगा गुरु दरबार में ... लकिन ये बात मैंने उससे नहीं बतायी और मैं निकल गया ...... ! उसी समय जब मैं रास्ते में था तो उसका फोन आया मेरे पास और कहने लगी - " मेरी वजह से आप सब लोगों को बहुत सी परेशानियां झेलनी पड रही हैं - मेरे घर में सब बहुत परेशान हैं - इसलिए मैंने फैसला किया है कि मैं कल सुबह घर छोड़ दूंगी " - मैं अचकचा गया कि यह तो सब उल्टा हो रहा है - यदि इसने घर छोड़ा तो जिस प्लान के साथ मैं मेंहदीपुर जा रहा हूँ अधर में फंस जायेगा - मैंने उसे बहुत समझाया कि " कोई परेशान नहीं है तुम्हारी वजह से - हम सब लोग बस अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं - और अपनों के लिए परेशान होना या समस्या का समाधान निकालना हम सबका कर्तव्य है "!
उसने तो जैसे निश्चय ही कर लिया था - मेरी किसी बात का कोई पड़ रहा था उसके ऊपर मैंने लाख कोशिशें कीं लेकिन असफल और तभी नेटवर्क फेल हो गया इसके बाद जब तक मैं वहाँ नहीं पहुंचा उसका फोन लगाता रहा लेकिन नहीं लगा -!
सुबह ४ बजे मैं मेंहदीपुर पहुँच गया सारे नियमों और मान्यताओं को पूरा करने के बाद मैं दर्शन के लिए लाइन पर लग गया और उस आसुरी शक्ति का आवाहन किया जिससे कि वह मेरे साथ ही प्रांगड़ के अंदर एक बार आ जाये तो फिर उसका अंत कोई नहीं रोक सकता - और मैं अपने इस प्रयास में सफल भी रहा - लेकिन शायद समय कुछ और चाहता था - जैसे ही उसके समापन के अंतिम चरण के पास ही था मैं कि मेरी उस दोस्त कि छोटी बहन का फोन आ गया मेरे पास कि उसकी दीदी घर छोडकर चली गयी - इस बात से अचानक मुझे झटका सा लगा और मेरे मुंह से अचानक निकला कि " अगर उसने मेरी बात नहीं सुनी तो तुम आजाद हो " और बस वह निकल भगा -!
मैं परेशान भी था और पछता भी रहा था कि ये कैसी गलती हो गयी मुझसे - लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था क्योंकि मैंने खुद ही गलती से उसे आजाद कर दिया था - इसके बाद खाली हाथ वापस मैं - उसके घर में भी सब परेशान और मैं भी परेशान क्योंकि एक हफ्ता होने को था उसकी कोई खबर नहीं थी - इसी बीच मैंने अपने परिचित एक संत से संपर्क किया और उनसे कहा कि ऐसी परिस्थिति है - आप कुछ भी करो लेकिन मुझे या तो उसका पता चाहिए या फिर उस तक पहुँचने का कोई और जरिया -!
उन्होंने मुझसे वादा किया कि आज से लेकर कल शाम तक में वह खुद तुम्हे संपर्क करेगी और आश्चर्य कि बात कि उसी दिन शाम में उसका एक सन्देश आया कि - वह अपनी किसी सहेली के घर में हैं और मैं ये बात किसी को न बताऊँ - क्योंकि ये बात अगर खुल गयी तो उसके घर वाले उसे घर ले जायेंगे और वह इस समस्या से कभी छुटकारा नहीं पास सकेगी -!
मैंने भी उसे वापसी सन्देश दे दिया कि - वह निश्चिंत रहे मैं उसके बारे में किसी को नहीं बताऊंगा - लेकिन वह मुझे यह बता दे कि वह है कहाँ पर और क्या करने वाली है ?
उसका सन्देश आया कि वह उदयपुर वाटी में कोई कोई बहुत मशहूर मंदिर है माता चामुंडा का वहीँ पर है -!
मेरे लिए इतना काफी था क्योंकि उसको परेशां करने वाली नकारात्मक शक्ति जो थी वह ऐसी थी जिसने हद से ज्यादा मुझे भी बेइज्जत किया था और मुझे पता था कि अब उसका अंत समय आ गया है - !
उसी रात जब मैं सोया तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे कोई दिव्य औरत मेरे सामने खड़ी है और कह रही है " यदि सारा सच जानना चाहते हो तो उदयपुर वाटी पहुँचो "
मैंने उसी समय सोच लिया कि मैं कल ही निकल जाउंगा सुबह उठाकर मैंने सबसे पहले अपने ऑफिस फोन किया कि मैं २ दिन कि छुट्टी पर रहूँगा - इस बात पर मेरे सीनियर से बहस हो गयी - उसका कहना था कि ऐसे अर्जेंट छुट्टी के लिए कोई प्रावधान नहीं होता - मैंने उसे बोला कि मैं छुट्टी पर हूँ तो हूँ - वापस आउंगा तब बात करेंगे -!
और ऐसा कहकर मैं वहाँ के लिए निकल पड़ा -!
जब मैं उदयपुर वाटी पहुंचा तो वहाँ पूछने पर पता चला कि कि वहाँ कोई चामुंडा माता का मंदिर है ही नहीं हाँ वहाँ से थोडा दूर खंडेला नाम कि जगह है वहाँ जरुर माता का मशहूर मंदिर है और ऊपरी हवाओं से ग्रस्त लोग वहाँ जाते हैं ( इस बीच अपरिहार्य कारणों से उसका मेरा कोई संपर्क नहीं हो पाया था )
मैं उदयपुर से खंडेला के लिए निकल पड़ा - खंडेला पहुंचकर मैंने फोन देखा तो उसका सन्देश पड़ा हुआ था जिसमे उसने लिखा था " यहाँ चारों तरफ बस पहाड़ ही पहाड़ हैं हर तरफ हरियाली है - बहुत अच्छा लग रहा है - मन करता है कि हमेशा के लिए यहीं रह जॉऊँ - और हाँ जब घर में थी तो वहाँ पानी के लिए तरसते थे कि अ बरसेगा तब बरसेगा तो गर्मी होगी लेकिन यहाँ तो दिन में कई कई बार पानी बरस जाता है - पूजा करने में भी माँ कि बहुत मजा आ रहा है - बहुत मानसिक शांति मिलती है - हम लोग मेरी सहेली के घर पर रुके हुए हैं लेकिन घर मैं सिर्फ खाना खाने जाती हूँ बाकी का पूरा समय माँ के मंदिर में ही गुजर जाता है "-!
मैं लगभग शाम के ४ बजे वहाँ पहुँच गया था - लेकिन मैंने उसे नहीं बताया कि मैं खुद भी वहीँ हूँ - बस उससे इतना पूछा अगले सन्देश में कि " मदिर में शाम को कितने बजे तक होती हो तुम " ?
उसने वापस सन्देश भेजा कि रात ०९ :३० तक - वहाँ पहुंचकर एक धरमशाला में पहले ठहरने का इंतजाम किया मैंने और इसके बाद वहाँ के कुछ स्थानीय लोगों से मंदिर और उसकी दुरी के बारे में पता किया तो पता चला कि यहाँ से डेढ़ या दो किलोमीटर दूर होगा और फिर पहाड़ के ऊपर जाने में लगभग इतना ही टाइम लगेगा - मैंने अंदाज लगाया कि किसी भी हाल में अगर मैं अभी निकल जाऊं तो ०८:३० तक पहुँच जाउंगा क्योंकि तब तक लगभग ५ बज चुके थे - अचानक से बरसात शुरू हो गयी तो धरमशाला के मालिक या स्टाफ जो भी कहें उन्होंने मुझे सलाह दी कि कल सुबह मंदिर चले जाना क्योंकि अभी पानी बरसना शुरू हो गया है और रास्ता सही नहीं है - लेकिन भला मैं कहाँ मानने वाला था तो अंततः उन्होंने एक छतरी दे दी मुझे और मैं निकल गया -!
जब मैं मंदिर के ट्रस्ट गेट के पास पहुंचा तो शाम के ०६:३० हो चुके थे पानी कम होने के बजाय और तेज हो गया था - नीचे बैठे पंडित से जब मैंने पूछा तो उसने जवाब दिया कि ऊपर पहुँचने में लगभग एक घंटा या डेढ़ घंटा लगेगा - लेकिन तुम रास्ते से जाने के बजाय पत्थरों को फलांगते हुए निकल जाओ तो जल्दी पहुँच जाओगे - इसके बाद मैंने संक्षिप्त रास्ते का चयन किया और पत्थरों पर कूदते - फलांगते हुए आगे बढ़ा - लेकिन कोई आधे घंटे का सफ़र ही तय किया होगा कि प्यास ने जोर करना शुरू किया - कुछ देर तक तो बर्दाश्त करता रहा - लेकिन कुछ देर बाद ऐसा लगने लगा कि जल्दी ही यदि पानी न मिला तो शायद आज प्राण नहीं बचेंगे - !
कितनी बेबसी महसूस कर रहा था मैं इसके बारे में अगर आज सोचता हूँ तो लगता है कि जैसे वह कोई सपना मात्र था - चारों तरफ घनघोर बारिश - पहाड़ से बहने वाला पानी ऐसा लग रहा था जैसे कि सारे नदी हुए हों तेज आवाज - सारे कपडे भी भीगे हुए थे लेकिन पीने के लिए एक बूंद पानी नहीं - इतने बारिश और ठन्डे मौसम के बाद भी मुझे चक्कर आने लगे और ऐसा महसूस हो रहा था कि बस अभी कदम साथ छोड़ देंगे - टाँगें मुड़ जाएँगी और यहीं किसी पत्थर से मेरा पैर फिसलेगा और फिर हमेशा के लिए मेरी जीवन लीला का अंत हो जायेगा - बस इस विचार मात्र ने उस घडी में मुझे सिर्फ इतना अहसास दिलाया कि मरना तो आज तय है लेकिन एक कोशिश मुझे चाहिए मुख्य रास्ते तक पहुँचने कि - क्योंकि यहाँ मरने का मतलब ये कि किसी को मेरी लाश तक नहीं मिलेगी - क्योंकि मैं शायद रास्ता भटक गया था - इतना सोचकर और अपनी मौत निश्चित मानकर मैंने फिर से अपनी खोयी हुयी ताक़त बटोरकर बस जिधर मुख्य रस्ते कि सीढ़ियां दिख रही थीं उधर दौड़ लगा दी -!
पहुँच गया मैं मुख्य रस्ते पर लेकिन अब आगे जाने कि हिम्मत नहीं बची थी - छतरी खोली और वहीँ बैठ गया - उस शाम अपनी बेबसी पर रो दिया वहीँ बैठे - बैठे मैं -! इसके बाद मुझे खुद भी पता नहीं कि क्या हुआ और कब मेरे ऊपर बेहोशी छा गयी - जब होश आया तो देखा कि मैं जमीन पर सीधा लेटा हुआ हूँ - और छतरी कि जो ढेर साडी डंडियां होती हैं उनमे से एक डंडी मेरे मुंह के अंदर पड़ी हुयी है जिससे होता हुआ पानी मेरे मुंह के अंदर जा रहा है - पता नहीं कितना पानी ऐसे पिया होगा मैंने लेकिन प्यास में कोई कमी नहीं आयी थी - लग रहा था कि ये बारिश का पूरा पानी पि जाऊं मैं - लेकिन अब कोशिश कि तो पैर साथ दे रहे थे - खड़ा हुआ तो हो गया लेकिन पैरों में कंपकपाहट हो रही थी - फिर भी ये सोचकर कि अब अगर एक बार बच गया हूँ तो अब नहीं मरूंगा - इसलिए कुछ भी हो जाये अब माँ के दरबार तक पहुंचना ही है - रास्ता जगह - जगह से कटा हुआ था - उजाले का कोई साधन नहीं जो बिजली चमकती थी उसी से दूर तक रास्ता दिख जाता था इसके बाद फिर घटाटोप अँधेरा - इसी बीच पाइप लाइन दिखी जो ऊपर मंदिर तक जा रही थी इसलिए उम्मीद बढ़ने लगी थी कि ऐसी पाइप लाइन्स अक्सर बीच में कहीं न कहीं से लीक होती हैं और वहाँ से पानी जरुर मिल जायेगा बहता हुआ पीने भर के लिए लेकिन आगे जाकर पाइप लाइन फिर मुख्य रस्ते से हटकर अलग हो गयी थी सो मेरा ये सोचना भी गलत साबित हुआ !
थोड़ी ही दूर और चला होऊंगा की अचानक एक ठोकर सी लगी पैरों में और मैं उलटी दिशा की तरफ गिरा - एक दर्द की लहर सी दौड़ गयी शरीर में - इतनी चोट लगी की फिर से आंसू निकल आये क्योंकि बात तो कि पत्थरों के ऊपर गिरा और दूसरी बात ये की पानी बरसने की वजह से पूरा शरीर और कपडे सब पानी से लथपथ - अब तो चोट से करवट बदलना भी मुश्किल हो रहा था - बेबसी से थोड़ी देर वैसे ही पड़ा रहा और रोता रहा फिर हिम्मत करके अपनी जगह पर बैठ गया तभी बिजली चमकी जोरों से और सामने की हालत देखकर मेरा मुंह और सूख गया -!
मुख्य रास्ता कटा हुआ हुआ था - और नीचे गहरी खाई दिख रही थी - अगर गिरा नहीं होता और सीधे उसी रास्ते में चार कदम और बढ़ाये होते तो कटे हुए रास्ते की खायी में गिर गया होता - अनायास ही मेरे मुंह से निकल गया " जिसकी पालनहार तू हो कोई उसको मार नहीं सकता - लेकिन मैं क्या करूँ मेरे पैर ही नहीं उठते माँ ऐसा लगता है की जिंदगी और हिम्मत बहुत कम हैं और तुझ तक पहुँचने का रास्ता बहुत लम्बा -!
आपबीती - भाग ४
"आज अगर तेरे दरबार तक पहुँच गया तो फिर मैं समझ लूंगा की बिना तेरी मर्जी के काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा "
फिर दोबारा बिजली कौंधी तो इतना असमर्थ होने के बाद भी पैरों में स्प्रिंग लग गए और बस उठा और भाग खड़ा हुआ ( सामने जहाँ रास्ता कटा हुआ था और खायीं नजर आ रही थी वहां से एक नाग निकल रहा था )
ये तो तय था की मौत मेरे हिस्से में है नहीं इसलिए आँखे बंद करके भागा - और भागता ही रहा - कुछ दूर पहुंचकर डर और दुःसाहस दोनों का धुवां निकल गया और फिर से पैर मुड़े कुछ पता नहीं की कहाँ था क्या हुआ - थोड़ी देर बाद जब आँखें खुलीं तो माता के मंदिर के प्रवेश द्वार की ड्यौढ़ी पर पड़ा हुआ था - लेकिन उठकर अंदर जा सकने की हिम्मत नहीं थी - तो बैठे - बैठे ही घिसट के चलना शुरू किया - मंदिर प्रांगड़ के अंदर पहुंचकर फिर थोड़ी देर लेटा रहा - हाँ इस सारे वाकये के दरम्यान मैं रोया बहुत शायद अपनी अब तक की जिंदगी में जितना नहीं रोया उतना इस एक दिन में रो लिया -!
रात के ०८:३० ही हुए थे अभी लेकिन लग रहा था जैसे कि कई सालों से इस सफर और बेबसी में हूँ - १० मिनट लगभग वैसे ही और पड़ा रहा की तभी फिर बिजली चमकी तो दिखा की मंदिर प्रांगड़ में मंदिर की विपरीत दिशा में दो कमरे बने हुए थे और सामने बरामदा था उसके ठीक सामने पानी का नल लगा हुआ था - देख कर जान में जान आई - हिम्मत करके नल तक गया नॉब घुमायी दो चुल्लू पानी निकला उसे पिया तो कुछ आराम महसूस हुआ लेकिन फिर उसके बाद पानी निकलना बंद हो गया - बहुत कोशिश की उलटी - सीधी दोनों तरफ नॉब को घुमाकर कोशिश कर ली लेकिन एक बूंद भी पानी नहीं निकला -!
प्यास थी की और बढ़ रही थी - कम होने के बजाय - बारिश अब भी हो रही थी पूरा शरीर और कपडे सब पानी से लथपथ हो चुके थे - लेकिन अब बेबसी कम महसूस हो रही थी क्योंकि अपने लक्ष्य तक पहुँचने की ख़ुशी भी बहुत थी - मंदिर में जहाँ माँ की मूर्ति स्थापित थी वहां जा पहुंचा - खूब बड़ी से बारादरी और वहां पर स्टील की रेलिंग लगी हुयी थी -! अब ठण्ड भी लग रही थी हवा का बहाव भी बहुत तेज था - फिर भी सारे कपडे उतारे - उनका पानी निचोड़ा और वही रेलिंग में फैला दिया -!
फोन निकाला - देखा तो पूरा फोन भी भीगा हुआ था - पॉवर बटन प्रेस किया तो ऑन हो गया - नेटवर्क भी बहुत डाउन हो रहा था बैटरी सिर्फ २ या पॉइंट थी - फेसबुक ओपन की और उसको एक सन्देश डाला " सीता मैं माता चामुण्डा के मंदिर में पहुँच गया हूँ - सच कहूँ तो जिंदगी और मौत के बीच का फासला आज किस तरह से तय किया है मैंने इसका बहुत अच्छा अनुभव रहा मुझे - मुझे पता है की समय बहुत हो चूका है - मौसम भी ख़राब है - इसलिए तुम आज जल्दी घर चली गयी होगी - अगर संभव हो तो कल जब सुबह यहाँ मंदिर आना तो साथ में पानी लेकर आना - मुझे बहुत प्यास लगी है - लेकिन कहीं पानी नहीं मिल रहा है - अगर सुबह तक तुम्हे जिन्दा मिलूं - ये प्यास अगर मेरी जान ना ले ले - तो ढेर सारा पानी पिऊंगा" -!
आपबीती - भाग ५
( एक खास बात यह की जब से वह घर से निकली थी और जितनी बार भी उसका मुझसे संपर्क हुआ था और उसके सन्देश आये थे वे सब फेसबुक पर ही आये थे - उन्ही संदेशों में उससे कई बार मैंने ये भी कहा था की किसी आपात्कालीन परिस्थिति के लिए अपना कोई कांटेक्ट नम्बर तो दे दो - जिसके जवाब में उसने बस इतना कहा था " जब मैंने घर छोड़ा तो अपना फोन भी उसी घर में छोड़ आई थी - मेरे पास मेरा अपना कोई फोन नहीं है - जिस सहेली के माता - पिता के साथ यहाँ आई हूँ - उन्ही आंटी जी का फोन लेकर उसी पर फेसबुक चलाकर तुम्हे सन्देश भेजती हूँ - लेकिन ये नो. मैं नहीं दे सकती - क्योंकि यह मेरा फोन नहीं है और मैं नहीं चाहती की कल को वो लोग ये कहें - की हमारे फोन नम्बर को मैंने सब को बाँट दिया " अस्तु सभी संदेशों का आदान - प्रदान सिर्फ फेसबुक के माध्यम से ही हो रहा था )
मैं देखता रहा फोन को की अभी वह मेरा सन्देश देखेगी और मुझे वापस जवाब देगी लेकिन आधा घंटा हो गया फोन की बैटरी अब लाल रंग लेने लगी थी - उसका कोई जवाब नहीं आया हाँ एक फोन जरूर आने लगा - बैटरी बिलकुल खत्म न हो इस वजह से मैंने वह फोन कट कर दिया -!
वहीँ मंदिर के प्रांगण में अब लेट गया था मैं चाहता था की नींद आ जाये - मैं सो जाऊं तो इस प्यास से भी मुक्ति मिलेगी और इस बेबसी से भी -!
लेकिन नींद भी तो नहीं आ रही थी -!
लगभग १ बजे रात में उसका सन्देश आया - लेकिन वह सन्देश पढ़कर मुझे कोई सुकून नहीं मिला बल्कि अपने ऊपर ही गुस्सा आने लगा -!
" तुम क्यों आ गए यहाँ -? मैंने तुम्हे मना किया था ना की जब तक मैं इस मुसीबत से मुक्ति न पा लूँ - तब तक तुम मेरे पास भी मत फटकना - मैं नहीं चाहती की जो भी मेरे अपने हैं उनको मेरी मुसीबत की वजह से कोई मुसीबत आये -! मुझे पता था की तुम ऐसा ही कुछ करोगे - यहाँ मंदिर में जो पंडित जी हैं उन्होंने कल शाम में बोला भी था की कोई तुम्हारी तरफ बढ़ रहा है लेकिन जो भी है वो पता नहीं उसका जीवन बचेगा भी या नहीं ? क्योंकि तुम्हारी मुसीबत उसकी जान की ग्राहक बनेगी - राम तुम कल सुबह ही ये जगह छोड़ दो मैं किसी की कातिल नहीं बनना चाहती "
" पता नहीं मुझे इस बला से मुक्ति मिल भी सकेगी या नहीं - अगर मैं मर जाऊं तो तुम ध्यान रखना मेरी छोटी बहन और मे्रे परिवार का - अगर माँ की कृपा से मैं सही हो गयी तो फिर मिलूंगी मैं तुमसे " वैसे अभी तुम हो कहाँ ?
मैने उसको जवाब दिया :- " मैं माता चामुण्डा के मंदिर में हूँ - वहीँ माता के मदिर के दरवाजे के सामने जहाँ स्टील की रेलिंग्स लगी हुयी हैं वहीँ पड़ा हुआ हूँ - बारिश और अँधेरा इतना ज्यादा है की मैं वापस भी नहीं जा सकता "-!
उसका फिर सन्देश आया :- "लेकिन जिस मंदिर में मैं जाती हूँ वह तो किसी पहाड़ पर नहीं है - वह तो ऐसे ही जमीन में बना हुआ है हाँ वहां से पहाड़ शुरू जरूर होता है - तुम कहाँ फंस गए हो " राम " तुम लोग मुझे न चैन से मरने दोगे न जीने दोगे - क्या करूँ अब कहाँ जाऊं मैं - कैसे ढूँढूँ तुम्हे इस रात में " ?
मैंने उसे पुनः जवाब भेजा :- " मेरे लिए परेशान होने की जरुरत नहीं है मैं अपनी माँ के घर में हूँ - मौत भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती - बस तुम कुछ मत करो हाँ बस इतना करना की मुझे अपना पूरा पता भेज दो मैं कल सुबह यहाँ से निकल कर वहां पहुँच जाऊंगा "
उसका जवाब आया :- " मुझे माफ़ करना राम मैं कुछ नहीं जानती इस जगह के बारे में लेकिन यह उदयपुर वाटी में हैं बस इतना पता है मुझे "
मैंने उसे सन्देश भेजा :- " कोई बात नहीं लेकिन तुम अंकल से पूछ लो या आंटी से पूछ लो क्योंकि उनका पैतृक घर है ही यहाँ पर जहाँ तुम लोग रुके हुए हो - वे तो जानते होंगे -"
उसने जवाब दिया :- " नहीं मैं चाहकर भी तुम्हे उस जगह का पता नहीं बता सकती क्योंकि तुम मेरे पास पहुंचोगे तो वह बुरी शक्ति तुम्हारी जान ले लेगी - ऐसा मुझे पहले ही मंदिर के पंडित जी ने बताया है - इसलिए तुम वापस चले जाना "
मैंने बहुत कोशिश की लेकिन उसका मन एक बार भी नहीं पसीजा और अब फोन भी ऑफ हो गया -!
खैर पूरी रात अब माँ के घर में ही गुजारनी थी -!
आपबीती - भाग ६
लेटा - लेटा सारे घटनाक्रमों के बारे में चिंतन करता रहा - तभी ऐसा लगा जैसे की मंदिर के पीछे वाले हिस्से में पत्थरों के ढेर सरे टुकड़े गिरे हों और दीवारों से टकराये हों - मैं उठकर भागा ये देखने की क्या हुआ ?
लेकिन पीछे कुछ भी नहीं था - सारा मैदान वैसा ही पड़ा हुआ था धुल और पेड़ों की पत्तियों से भरा हुआ - कुछ नहीं था वहां मैं वापस आकर लेट गया अपनी जगह पर - बारादरी में लगभग ९ या १० कमरे बने होंगे पूरे सबके दरवाजे बंद थे - माँ के कमरे का भी ताला बंद था - थोड़ी देर बाद ऐसा लगने लगा की जैसे सारे कमरों के दरवाजे टूट जायेंगे - अंदर से दरवाजों की भड़भड़ाहट शुरू हो गयी - हवा की सनसनाहट में लग रहा था - जैसे की कोई मुझसे कह रहा हो की हमे बाहर निकालो - हम बाहर आना चाहते हैं -!
बहुत दिन हुए - कोई नहीं आता यहाँ - तुम कैसे आ गए हो ?
मैं सब सुनता रहा - और लेटा रहा - पता नहीं कब नींद आई जब आँख खुली तो सवेरा हो चूका था - देखा तो सबसे पहले पानी की जरुरत महसूस हुयी फिर से उठा कर गया तो नल की नॉब पर कारीगरी शुरू की लेकिन असफल प्रयास पानी को नहीं निकलना था सो नहीं निकला -!
अब मैंने वहां पर घूमना शुरू किया तो देखा की जहाँ मंदिर का प्रवेश द्वार था उसके बगल से ही पाइप लाइन कटी हुयी है और अलग पड़ी है - मतलब ये आशा खत्म हो गयी की यहाँ पानी भी मिल सकता है - हैरत की बात थी - अगर पानी की पाइप लाइन कटी हुयी है और देखकर ऐसा लग रहा था की काफी दिन से कटी हुयी होगी क्योंकि पाइप जहाँ से कटा हुआ था वहां बहुत जंग लगा हुआ था -
"तो फिर वह दो चुल्लू पानी जो निकला था वह कहाँ से आया था" ?
माँ की महिमा माँ ही जाने - फिर मैं वहीँ बैठकर इंतजार करने लगा की शायद अभी थोड़ी देर में लोग आएंगे यहाँ - या तो फिर पुजारी ही आएगा पूजा करने सुबह की - और तब मुझे पीने के लिए पानी मिल जायेगा - दूसरी आशा यह भी थी की " सीता " खुद ही आएगी - क्योंकि हो सकता है उसने मुझसे झूठ कहा हो की वह इस मंदिर में नहीं आती - जिसकी वजह से मैं वापस चला जाऊं - लेकिन अब तो फोन भी ऑन नहीं है सो उसे पता भी नहीं चलेगा की मैं यहाँ से गया हूँ या नहीं - और वह आएगी अपने डेली नियमानुसार और मैं उसे बोलूंगा की " देखो आखिर मैंने तुम्हे ढूंढ ही लिया ना " ?
आपबीती - भाग ७
दिन के ९ बजे तक वहां ही रहा लेकिन उस मंदिर में न तो कोई पुजारी पहुंचा न कोई और जानवर तक पहुंचा - जानवरों के पहुँचने का तो सवाल ही नहीं उठता क्योंकि नीचे से मंदिर तक ऊंचाई कम से कम डेढ़ किलोमीटर से ज्यादा ही होगी - अंततः थक - हारकर मैंने ९ बजे वहां से वापस आने का फैसला किया - वापस आने पर मैं देख रहा था की मंदिर जाने वाला मुख्य रास्ता इतनी जगह से टुटा - फूटा हुआ है की - मुझे खुद नहीं पता की रात में इन खाइयों में क्यों नहीं गिरा मैं ?
बहरहाल लगभग ११:३० पर मैं नीचे धरती पर पहुंचा - तो सामने लगे हुए नल में जी भरकर पानी पिया और वहां से अपने धर्मशाला के लिए निकला - !
धर्मशाला पहुंचकर मैंने फोन चार्जिंग में लगाया - नह धोकर आया - फोन ऑन किया तो उसके दो सन्देश पड़े हुए थे उनका जवाब दिया और फिर एक बार रिक्वेस्ट की मुझे अपना सही पता बता दो - लेकिन उसने नहीं बताया - हाँ एक कसम जरूर दे दी -!
" तुम्हे तुम्हारी माँ चामुण्डा की कसम है तुरंत वापस चले जाओ - अगर नहीं गए तो तुम्हे कुछ हो या न हो हां मैं यहाँ के किसी पहाड़ से कूदकर शाम तक आत्महत्या जरूर कर लुंगी "
और मैं वहां से वापस चल पड़ा -!
( मेरी इस कहानी में मैं अपने उन सभी मित्रों से एक ही निवेदन करना चाहूंगा जो भी राजस्थान से सम्बंधित हैं - यह आप सब लोगों की जिम्मेदारी भी है की उस मंदिर के ट्रस्ट से संपर्क करें - ऐसा कैसे हो सकता है की मंदिर में नीचे बैठे हुए लोग जिन्हे पूजा करने के लिए रखा गया है वे तिलक लगाकर अपने आपको सजा सवाँर कर बैठे हुए हैं - ट्रस्ट ने वहां फ्रीजर लगवाया हुआ है - फ्रीज़र का पानी पी रहे हैं लेकिन जिसकी वजह से उनको ये सब सुविधाएँ मिली हैं - वह ऐसे ही पड़ी हुयी है उसको न कोई पूछने वाला है - ना बंद मंदिर का ताला खोलने वाला है - यही सारी अनियमितताएं कल को उस सारे इलाके में कोई कहर ढाएंगी तो लोग ईश्वर को दोष देकर इतश्री कर लेंगे वहां की आंतरिक गतिविधियाँ कोई नहीं जानता -!)
जय माँ चामुण्डा
"आज अगर तेरे दरबार तक पहुँच गया तो फिर मैं समझ लूंगा की बिना तेरी मर्जी के काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा "
फिर दोबारा बिजली कौंधी तो इतना असमर्थ होने के बाद भी पैरों में स्प्रिंग लग गए और बस उठा और भाग खड़ा हुआ ( सामने जहाँ रास्ता कटा हुआ था और खायीं नजर आ रही थी वहां से एक नाग निकल रहा था )
ये तो तय था की मौत मेरे हिस्से में है नहीं इसलिए आँखे बंद करके भागा - और भागता ही रहा - कुछ दूर पहुंचकर डर और दुःसाहस दोनों का धुवां निकल गया और फिर से पैर मुड़े कुछ पता नहीं की कहाँ था क्या हुआ - थोड़ी देर बाद जब आँखें खुलीं तो माता के मंदिर के प्रवेश द्वार की ड्यौढ़ी पर पड़ा हुआ था - लेकिन उठकर अंदर जा सकने की हिम्मत नहीं थी - तो बैठे - बैठे ही घिसट के चलना शुरू किया - मंदिर प्रांगड़ के अंदर पहुंचकर फिर थोड़ी देर लेटा रहा - हाँ इस सारे वाकये के दरम्यान मैं रोया बहुत शायद अपनी अब तक की जिंदगी में जितना नहीं रोया उतना इस एक दिन में रो लिया -!
रात के ०८:३० ही हुए थे अभी लेकिन लग रहा था जैसे कि कई सालों से इस सफर और बेबसी में हूँ - १० मिनट लगभग वैसे ही और पड़ा रहा की तभी फिर बिजली चमकी तो दिखा की मंदिर प्रांगड़ में मंदिर की विपरीत दिशा में दो कमरे बने हुए थे और सामने बरामदा था उसके ठीक सामने पानी का नल लगा हुआ था - देख कर जान में जान आई - हिम्मत करके नल तक गया नॉब घुमायी दो चुल्लू पानी निकला उसे पिया तो कुछ आराम महसूस हुआ लेकिन फिर उसके बाद पानी निकलना बंद हो गया - बहुत कोशिश की उलटी - सीधी दोनों तरफ नॉब को घुमाकर कोशिश कर ली लेकिन एक बूंद भी पानी नहीं निकला -!
प्यास थी की और बढ़ रही थी - कम होने के बजाय - बारिश अब भी हो रही थी पूरा शरीर और कपडे सब पानी से लथपथ हो चुके थे - लेकिन अब बेबसी कम महसूस हो रही थी क्योंकि अपने लक्ष्य तक पहुँचने की ख़ुशी भी बहुत थी - मंदिर में जहाँ माँ की मूर्ति स्थापित थी वहां जा पहुंचा - खूब बड़ी से बारादरी और वहां पर स्टील की रेलिंग लगी हुयी थी -! अब ठण्ड भी लग रही थी हवा का बहाव भी बहुत तेज था - फिर भी सारे कपडे उतारे - उनका पानी निचोड़ा और वही रेलिंग में फैला दिया -!
फोन निकाला - देखा तो पूरा फोन भी भीगा हुआ था - पॉवर बटन प्रेस किया तो ऑन हो गया - नेटवर्क भी बहुत डाउन हो रहा था बैटरी सिर्फ २ या पॉइंट थी - फेसबुक ओपन की और उसको एक सन्देश डाला " सीता मैं माता चामुण्डा के मंदिर में पहुँच गया हूँ - सच कहूँ तो जिंदगी और मौत के बीच का फासला आज किस तरह से तय किया है मैंने इसका बहुत अच्छा अनुभव रहा मुझे - मुझे पता है की समय बहुत हो चूका है - मौसम भी ख़राब है - इसलिए तुम आज जल्दी घर चली गयी होगी - अगर संभव हो तो कल जब सुबह यहाँ मंदिर आना तो साथ में पानी लेकर आना - मुझे बहुत प्यास लगी है - लेकिन कहीं पानी नहीं मिल रहा है - अगर सुबह तक तुम्हे जिन्दा मिलूं - ये प्यास अगर मेरी जान ना ले ले - तो ढेर सारा पानी पिऊंगा" -!
( एक खास बात यह की जब से वह घर से निकली थी और जितनी बार भी उसका मुझसे संपर्क हुआ था और उसके सन्देश आये थे वे सब फेसबुक पर ही आये थे - उन्ही संदेशों में उससे कई बार मैंने ये भी कहा था की किसी आपात्कालीन परिस्थिति के लिए अपना कोई कांटेक्ट नम्बर तो दे दो - जिसके जवाब में उसने बस इतना कहा था " जब मैंने घर छोड़ा तो अपना फोन भी उसी घर में छोड़ आई थी - मेरे पास मेरा अपना कोई फोन नहीं है - जिस सहेली के माता - पिता के साथ यहाँ आई हूँ - उन्ही आंटी जी का फोन लेकर उसी पर फेसबुक चलाकर तुम्हे सन्देश भेजती हूँ - लेकिन ये नो. मैं नहीं दे सकती - क्योंकि यह मेरा फोन नहीं है और मैं नहीं चाहती की कल को वो लोग ये कहें - की हमारे फोन नम्बर को मैंने सब को बाँट दिया " अस्तु सभी संदेशों का आदान - प्रदान सिर्फ फेसबुक के माध्यम से ही हो रहा था )
मैं देखता रहा फोन को की अभी वह मेरा सन्देश देखेगी और मुझे वापस जवाब देगी लेकिन आधा घंटा हो गया फोन की बैटरी अब लाल रंग लेने लगी थी - उसका कोई जवाब नहीं आया हाँ एक फोन जरूर आने लगा - बैटरी बिलकुल खत्म न हो इस वजह से मैंने वह फोन कट कर दिया -!
वहीँ मंदिर के प्रांगण में अब लेट गया था मैं चाहता था की नींद आ जाये - मैं सो जाऊं तो इस प्यास से भी मुक्ति मिलेगी और इस बेबसी से भी -!
लेकिन नींद भी तो नहीं आ रही थी -!
लगभग १ बजे रात में उसका सन्देश आया - लेकिन वह सन्देश पढ़कर मुझे कोई सुकून नहीं मिला बल्कि अपने ऊपर ही गुस्सा आने लगा -!
" तुम क्यों आ गए यहाँ -? मैंने तुम्हे मना किया था ना की जब तक मैं इस मुसीबत से मुक्ति न पा लूँ - तब तक तुम मेरे पास भी मत फटकना - मैं नहीं चाहती की जो भी मेरे अपने हैं उनको मेरी मुसीबत की वजह से कोई मुसीबत आये -! मुझे पता था की तुम ऐसा ही कुछ करोगे - यहाँ मंदिर में जो पंडित जी हैं उन्होंने कल शाम में बोला भी था की कोई तुम्हारी तरफ बढ़ रहा है लेकिन जो भी है वो पता नहीं उसका जीवन बचेगा भी या नहीं ? क्योंकि तुम्हारी मुसीबत उसकी जान की ग्राहक बनेगी - राम तुम कल सुबह ही ये जगह छोड़ दो मैं किसी की कातिल नहीं बनना चाहती "
" पता नहीं मुझे इस बला से मुक्ति मिल भी सकेगी या नहीं - अगर मैं मर जाऊं तो तुम ध्यान रखना मेरी छोटी बहन और मे्रे परिवार का - अगर माँ की कृपा से मैं सही हो गयी तो फिर मिलूंगी मैं तुमसे " वैसे अभी तुम हो कहाँ ?
मैने उसको जवाब दिया :- " मैं माता चामुण्डा के मंदिर में हूँ - वहीँ माता के मदिर के दरवाजे के सामने जहाँ स्टील की रेलिंग्स लगी हुयी हैं वहीँ पड़ा हुआ हूँ - बारिश और अँधेरा इतना ज्यादा है की मैं वापस भी नहीं जा सकता "-!
उसका फिर सन्देश आया :- "लेकिन जिस मंदिर में मैं जाती हूँ वह तो किसी पहाड़ पर नहीं है - वह तो ऐसे ही जमीन में बना हुआ है हाँ वहां से पहाड़ शुरू जरूर होता है - तुम कहाँ फंस गए हो " राम " तुम लोग मुझे न चैन से मरने दोगे न जीने दोगे - क्या करूँ अब कहाँ जाऊं मैं - कैसे ढूँढूँ तुम्हे इस रात में " ?
मैंने उसे पुनः जवाब भेजा :- " मेरे लिए परेशान होने की जरुरत नहीं है मैं अपनी माँ के घर में हूँ - मौत भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती - बस तुम कुछ मत करो हाँ बस इतना करना की मुझे अपना पूरा पता भेज दो मैं कल सुबह यहाँ से निकल कर वहां पहुँच जाऊंगा "
उसका जवाब आया :- " मुझे माफ़ करना राम मैं कुछ नहीं जानती इस जगह के बारे में लेकिन यह उदयपुर वाटी में हैं बस इतना पता है मुझे "
मैंने उसे सन्देश भेजा :- " कोई बात नहीं लेकिन तुम अंकल से पूछ लो या आंटी से पूछ लो क्योंकि उनका पैतृक घर है ही यहाँ पर जहाँ तुम लोग रुके हुए हो - वे तो जानते होंगे -"
उसने जवाब दिया :- " नहीं मैं चाहकर भी तुम्हे उस जगह का पता नहीं बता सकती क्योंकि तुम मेरे पास पहुंचोगे तो वह बुरी शक्ति तुम्हारी जान ले लेगी - ऐसा मुझे पहले ही मंदिर के पंडित जी ने बताया है - इसलिए तुम वापस चले जाना "
मैंने बहुत कोशिश की लेकिन उसका मन एक बार भी नहीं पसीजा और अब फोन भी ऑफ हो गया -!
खैर पूरी रात अब माँ के घर में ही गुजारनी थी -!
लेटा - लेटा सारे घटनाक्रमों के बारे में चिंतन करता रहा - तभी ऐसा लगा जैसे की मंदिर के पीछे वाले हिस्से में पत्थरों के ढेर सरे टुकड़े गिरे हों और दीवारों से टकराये हों - मैं उठकर भागा ये देखने की क्या हुआ ?
लेकिन पीछे कुछ भी नहीं था - सारा मैदान वैसा ही पड़ा हुआ था धुल और पेड़ों की पत्तियों से भरा हुआ - कुछ नहीं था वहां मैं वापस आकर लेट गया अपनी जगह पर - बारादरी में लगभग ९ या १० कमरे बने होंगे पूरे सबके दरवाजे बंद थे - माँ के कमरे का भी ताला बंद था - थोड़ी देर बाद ऐसा लगने लगा की जैसे सारे कमरों के दरवाजे टूट जायेंगे - अंदर से दरवाजों की भड़भड़ाहट शुरू हो गयी - हवा की सनसनाहट में लग रहा था - जैसे की कोई मुझसे कह रहा हो की हमे बाहर निकालो - हम बाहर आना चाहते हैं -!
बहुत दिन हुए - कोई नहीं आता यहाँ - तुम कैसे आ गए हो ?
मैं सब सुनता रहा - और लेटा रहा - पता नहीं कब नींद आई जब आँख खुली तो सवेरा हो चूका था - देखा तो सबसे पहले पानी की जरुरत महसूस हुयी फिर से उठा कर गया तो नल की नॉब पर कारीगरी शुरू की लेकिन असफल प्रयास पानी को नहीं निकलना था सो नहीं निकला -!
अब मैंने वहां पर घूमना शुरू किया तो देखा की जहाँ मंदिर का प्रवेश द्वार था उसके बगल से ही पाइप लाइन कटी हुयी है और अलग पड़ी है - मतलब ये आशा खत्म हो गयी की यहाँ पानी भी मिल सकता है - हैरत की बात थी - अगर पानी की पाइप लाइन कटी हुयी है और देखकर ऐसा लग रहा था की काफी दिन से कटी हुयी होगी क्योंकि पाइप जहाँ से कटा हुआ था वहां बहुत जंग लगा हुआ था -
"तो फिर वह दो चुल्लू पानी जो निकला था वह कहाँ से आया था" ?
माँ की महिमा माँ ही जाने - फिर मैं वहीँ बैठकर इंतजार करने लगा की शायद अभी थोड़ी देर में लोग आएंगे यहाँ - या तो फिर पुजारी ही आएगा पूजा करने सुबह की - और तब मुझे पीने के लिए पानी मिल जायेगा - दूसरी आशा यह भी थी की " सीता " खुद ही आएगी - क्योंकि हो सकता है उसने मुझसे झूठ कहा हो की वह इस मंदिर में नहीं आती - जिसकी वजह से मैं वापस चला जाऊं - लेकिन अब तो फोन भी ऑन नहीं है सो उसे पता भी नहीं चलेगा की मैं यहाँ से गया हूँ या नहीं - और वह आएगी अपने डेली नियमानुसार और मैं उसे बोलूंगा की " देखो आखिर मैंने तुम्हे ढूंढ ही लिया ना " ?
दिन के ९ बजे तक वहां ही रहा लेकिन उस मंदिर में न तो कोई पुजारी पहुंचा न कोई और जानवर तक पहुंचा - जानवरों के पहुँचने का तो सवाल ही नहीं उठता क्योंकि नीचे से मंदिर तक ऊंचाई कम से कम डेढ़ किलोमीटर से ज्यादा ही होगी - अंततः थक - हारकर मैंने ९ बजे वहां से वापस आने का फैसला किया - वापस आने पर मैं देख रहा था की मंदिर जाने वाला मुख्य रास्ता इतनी जगह से टुटा - फूटा हुआ है की - मुझे खुद नहीं पता की रात में इन खाइयों में क्यों नहीं गिरा मैं ?
बहरहाल लगभग ११:३० पर मैं नीचे धरती पर पहुंचा - तो सामने लगे हुए नल में जी भरकर पानी पिया और वहां से अपने धर्मशाला के लिए निकला - !
धर्मशाला पहुंचकर मैंने फोन चार्जिंग में लगाया - नह धोकर आया - फोन ऑन किया तो उसके दो सन्देश पड़े हुए थे उनका जवाब दिया और फिर एक बार रिक्वेस्ट की मुझे अपना सही पता बता दो - लेकिन उसने नहीं बताया - हाँ एक कसम जरूर दे दी -!
" तुम्हे तुम्हारी माँ चामुण्डा की कसम है तुरंत वापस चले जाओ - अगर नहीं गए तो तुम्हे कुछ हो या न हो हां मैं यहाँ के किसी पहाड़ से कूदकर शाम तक आत्महत्या जरूर कर लुंगी "
और मैं वहां से वापस चल पड़ा -!
( मेरी इस कहानी में मैं अपने उन सभी मित्रों से एक ही निवेदन करना चाहूंगा जो भी राजस्थान से सम्बंधित हैं - यह आप सब लोगों की जिम्मेदारी भी है की उस मंदिर के ट्रस्ट से संपर्क करें - ऐसा कैसे हो सकता है की मंदिर में नीचे बैठे हुए लोग जिन्हे पूजा करने के लिए रखा गया है वे तिलक लगाकर अपने आपको सजा सवाँर कर बैठे हुए हैं - ट्रस्ट ने वहां फ्रीजर लगवाया हुआ है - फ्रीज़र का पानी पी रहे हैं लेकिन जिसकी वजह से उनको ये सब सुविधाएँ मिली हैं - वह ऐसे ही पड़ी हुयी है उसको न कोई पूछने वाला है - ना बंद मंदिर का ताला खोलने वाला है - यही सारी अनियमितताएं कल को उस सारे इलाके में कोई कहर ढाएंगी तो लोग ईश्वर को दोष देकर इतश्री कर लेंगे वहां की आंतरिक गतिविधियाँ कोई नहीं जानता -!)
जय माँ चामुण्डा
जय माँ महाकाली
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