Sunday, February 23, 2014

५१ शक्तिपीठ एक अवलोकन - 51 Shakti Peeth

५१ शक्तिपीठ एक अवलोकन / विवेचन - 51 Shakti Peeth




जैसा कि सर्व विदित है कि --- भगवान् शिव कि प्रथम पत्नी जो कि राजा दक्ष कि पुत्री थीं उनका परिणय भगवान् सही के साथ हुआ था -- एक बार देवलोक में सभा में सभी देव और ऋषिगण मौजूद थे भगवान् शिव भी उस सभा में मौजूद थे और अपनी समाधी में लीन हो गए थे उसी समय महाराज दक्ष का आगमन हुआ सभी देव और ऋषि समूह ने यथायोग्य सत्कार किया महाराज दक्ष का किन्तु भगवान् शिव जो अपनी समाधी में लीन थे उन्हें कुछ ध्यान नहीं था और वे अपनी समाधी में ही लीन रहे किन्तु दक्ष इस बात से अनभिज्ञ थे और उनका रजोगुण इस बात को सहन नहीं कर पाया और शिव जी का ये कर्म उन्हें अपने तिरस्कार कि निशानी लगी जिससे उनके अहम् को चोट पहुंची -- उन्होंने भरी सभा में वहीँ पर क्रुद्ध मुद्रा में आकर भगवान् शिव को श्राप दे दिया !

" हे अभिमानी शिव मेरे यहाँ पहुँचते ही सभी ऋषि मुनि एवं देवों ने यथायोग्य मेरा सत्कार किया किन्तु तुम किसी उन्मत्त कि भांति अपने आसन पर बैठे रहे तुम्हे किसी का सम्मान कैसे किया जाता है ये लोकाचार भी नहीं पता -- हमेशा नशे में धुत्त रहते हो इस वजह से तुम्हे लोकाचार का भी भान नहीं रहा -- मैं राजा दक्ष आज तुम्हे इस भरी सभा में श्राप देता हूँ कि आज के बाद किसी भी अनुष्ठान या यज्ञ में तुम्हारा भाग नहीं निकेलगा और जिस तरह से आज तुमने मेरी उपेक्षा कि है हर यज्ञ कर्म में तुम उपेक्षित किये जाओगे "

और ऐसा कहकर राजा दक्ष एवं सभी लोग अपने अपने स्थान को गए --- अब काफी दिनों तक सब कुछ ठीक चला इसके बाद राजा दक्ष ने सोचा कि मैंने श्राप तो दे दिया शिव जी को लेकिन यदि मैंने ही कोई कदम नहीं उठाया तो बाकि लोग कैसे उपेक्षा करेंगे शिव कि सो उन्हों इस उद्देश्य से एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया जिसमे सभी को आमंत्रित किया किन्तु भगवान् शिव और सती को निमंत्रण नहीं भेजा !

निर्धारित  समय पर सभी देवगन एवं आमंत्रित लोग यज्ञ में भाग लेने के लिए चलते हैं .. आकाश मार्ग में इतनी गहमागहमी देखकर सती को बड़ा आश्चर्य होता है -- उसी समय वे किसी को रोककर पूछती हैं :- " आप सब लोग और इतने अन्य लोग कहाँ जा रहे हैं ? कहीं कोई विशेष आयोजन है क्या ?

उस युग्म ने आश्चर्य से कहा :- " हे सती आपको ये पता नहीं है या आप परिहास कर रही हैं ? हम सब आपके पिता राजा दक्ष के यज्ञ में जा रहे हैं " और ऐसा कहकर वे लोग अपने रास्ते चले गए -!

सती के मन में बिभिन्न तरह के बिचार चलते रहे उनका मन मानने को तैयार ही नहीं था कि उनके पिता के घर में समारोह हो रहा है और वे आमंत्रित नहीं हुयी हैं
कई बार उनके मन में विचार आता कि शायद भगवान् सही को पता हो उनके यहाँ आमंत्रण आया हो और प्रभु उन्हें बताना ही भूल गए हों और फिर समाधी में बैठ गए तो बात आयी गयी हो गयी हो ...!
कई बार ये सोचतीं कि काम बहुत रहा होगा तो कहीं पिता और माता श्री को भूल न गया हो और उन्हें लग रहा हो कि सती को और भगवान् शिव को निमंत्रण पहुँच चूका है ...!
कशमकश कि स्थिति है भगवन  शिव समाधी में लीन हैं माता सती के मन में ज्वर-भाटा चल रहा है अंत में माँ सोचती हैं कि चलो कुछ भी हो लेकिन यदि उनके पिता उन्हें आमंत्रित भूल भी गए हों तो भी और यदि भगवान् शिव बताना भूल भी गए हों तो भी उनके पिता के यहाँ आयोजन है और उस आयोजन में उन्हें जाना ही है ...!
लेकिन जाएँ कैसे अभी तो भगवान शिव अपनी समाधी में लीन हैं और पति कि आज्ञा के बिना कैसे जाएँ ? एक और कशमकश ....!

लेकिन भावी  है ... माँ के इस प्रकार सोचते-सोचते  ही भगवान शिव समाधी से लौट आते हैं माँ को चिंतित देखते है तो पूछ बैठते हैं :- " क्या हुआ सती इतनी व्यग्र क्यों दिख रही हो ?

माँ स्त्रियोचित गुण से उलाहना देते हुए कहती हैं - " हे नाथ आप भी न आजकल बहुत भुलक्कड़ होते जा रहे हैं
पिता श्री के यहाँ आयोजन है उनके यहाँ से निमंत्रण आया और आपने मुझे बताया तक नहीं "

शिव ने माजरा समझ लिया और बड़े प्रेम भरे अंदाज में बोले " सती नहीं .. भला मैं तुमसे क्यों छुपुंग कोई बात लेकिन सच तो ये है कि शायद तुम्हारे पिता उस दिन कि बात को भूल नहीं पाये जो दसभा में घटित हुयी थी और इसी वजह से शायद उन्होंने हमे आमंत्रित नहीं किया है "

माता सती ने कहा " नहीं प्रभु मेरे पिता ऐसे नहीं नहीं हैं .. हो सकता है कि इतनी व्यस्तताओं में वे भूल गए हों तो हमे इस बात को दिल से नहीं लगाना चाहिए और लोक रीति कहती है कि " अपने परिजनों के यहाँ से यदि औपचारिक आमंत्रण नहीं भी मिलता है तो वहाँ जेन में कोई बुराई नहीं होती "

शिव बहुत समझते हैं लेकिन माँ सती अपने तर्कों के सामने कुछ सुनने को तैयार ही नहीं हैं --- बाते बहश में बदल गयीं और रूद्र रुष्ट होकर कैलाश से जाने को उद्धत होते हैं ... तो माँ सोचती हैं कि " ये मुझे जाने नहीं देना चाहते और उस दिन देवलोक में मेरे पिता कि कही हुयी बैटन को अब तक ह्रदय में बसाये बैठे हैं -- लेकिन मैं भी ठान चुकी हूँ कि मुझे आयोजन में जाना है - सो मैं तो जाकर रहूंगी चाहे कुछ भी करना पड़े " !

माता ने रोकना चाहा --- बहुत प्रयत्न किया रो भी दिन रूद्र के सामने लेकिन रूद्र नहीं माने  -- रुकने को तैयार ही नहीं ---!  

माँ भी क्रोध के आवेश में आ जाती हैं - और क्रोध करते ही उनके शरीर से दस महा शक्तियों का प्राकट्य होता होता शिव जिस भी दिशा का रुख करते हैं वही दिशा अवरुद्ध मिलती है प्रचंड शक्तियां रास्ता रोके खड़ी हैं --- आवाज आती है " शिव इस दिशा से कोई गमनागमन नहीं हो सकता "

शिव समझ जाते हैं कि होनी  अव्वश्यम्भावी है और सती से बिछड़ने का समय आ गया उनका कृत्रिम  क्रोध भी काम न आ सका

एक अन्य अंतर्कथा :-
जब देव सभा में भगवान शिव का अपमान किया जाता है दक्ष के द्वारा और भगवान शिव कोई प्रतिकार नहीं करते -- ये बात जब सती को पता चलती है तो उनका मन बहुत खिन्न होता है और वे सोचती हैं कि " सिर्फ उनकी वजह से भगवान् शिव को ये अपमान सहना पड़ा वर्ना प्रलय के देवता जिनके समक्ष देव या दानव कोई भी खड़ा नहीं सकता उनका अपमान करना दक्ष के बस कि बात नहीं थी रूद्र ने कोई जवाब इसलिए नहीं दिया क्योंकि वो मेरे पिता थे --- जिस व्यक्ति ने मेरे पति का अपमान किया उसके द्वारा प्रदत्त इस शरीर को और अधिक दिन तक ढोना सबसे ज्यादा कलंक कि बात होगी इसके आलावा जब भी भगवान शिव मुझे देखेंगे उन्हें हमेशा उस अपमान कि याद आती रहेगी इसलिए उन्होंने शरीर त्याग का प्रण उसी दिन ले लिया था अन्यथा माँ इतनी झगड़ालू नहीं है -- भगवान शिव को भी उनके संकल्प का पता था इसी वजह से वे इस घटना को टालने के लिए यथोचित उपाय कर रहे थे !

अंततः माँ कि जिद के सामने शिव हार गए और उन्होंने माँ सती को यज्ञ में जाने कि अनुमति दे दी साथ में कुछ गणों को एवं बाबा नंदी को भेजा कि साथ जाओ -- माता ख़ुशी  ख़ुशी चल दीं -- और पहुंचकर सभी मायके वालों से बड़े प्रेम से मिलीं लेकिन मौसम उन्हें कुछ बदला - बदला  सा लग रहा था - इस बार माँ के प्रेम में भी उन्हें वह आत्मीयता नजर नहीं आयी जो इससे पहले आती थी -- खैर आयोजन बड़ा था व्यस्तताएं ज्यादा थी ये एक वजह हो सकती है ऐसा सोचकर माँ सती ने मन को खुद ही सांत्वना दे ली ....... यज्ञ स्थल पर पहुंचीं माता तो देखा कि सभी देव - दानव यथास्थान विराजमान थे और अपना भाग ले रहे थे लेकिन माता को उनके स्वामी का भाग कहीं नहीं दिखा तो माँ ने चंचलता पूर्वक पिता से पूछा :- " क्या बात है पिता श्री आपकी बेटी इतनी परायी हो गयी कि आपने इतने बड़े आयोजन में निमंत्रण तक देना ठीक नहीं समझा और सभी देवी देवताओं का हिस्सा यहाँ नजर आ रहा है लेकिन आपके दामाद और मेरे पति का हिस्सा नजर नहीं आ रहा " ?

दक्ष ने उत्तर दिया :- " सती अब अगर बिना बुलाये आ ही गयी तो तो चुपचाप आयोजन का आनंद लो और उस ढोंगी शिव का नाम भी मत लो मेरे सामने -- जिसे लोक लाज का और अपने से बड़ों के सम्मान का तरीका तक नहीं पता और जो हमेशा नशे में धुत्त रहता है --- तुम मेरी पुत्री नहीं होती तो तुम्हे भी यहाँ से बाहर कर दिया जाता --- ये आयोजन उस ढोंगी के बहिष्कार के लिए ही आयोजित किया गया है "

इतना सुनते ही माता के रोंगटे खड़े हो गए --- और क्रोध से उनका चेहरा लाल हो गया -- उन्होंने दक्ष को और वहाँ उपस्थित सभी देव दानवगणों को सम्बोधित करते हुए कहा :- " हे दक्ष मन तो करता है कि यहीं इस भरी सभा में तुम्हे भस्म कर दूँ लेकिन मेरे इस शरीर कि उत्पत्ति का कारन तुम हो इसलिए यह अनुचित होगा --- जिस शिव कि अवहेलना तुम कर रहे हो वे तो इस दुनिया के कण-कण में व्याप्त हैं तुम्हे क्या लगता है कि तुम उनका अपमान करो तो वे तुम्हे जवाब नहीं दे सकते ? लेकिन तुम्हे तुम्हारे कर्म का दंड नहीं दिया शिव ने इसकी वजह मैं हूँ ---- जो देवादिदेव हैं और अखिल ब्रह्माण्ड का नाश पलक झपकने से भी कम समय में कर सकते हैं उनके लिए तुम्हे दंड देना क्या बड़ी बात है ? तुम्हे दंड नहीं मिला इसकी वजह मैं हूँ ---- मुझे शर्म आती है तुम जैसे शिवद्रोही को अपना पिता कहते हुए --- और यहाँ उपस्थित अन्य देवगणों तुम पर जब कोई मुसीबत आती है तो देवादिदेव महादेव के नारे लगाते हो --- और आज उन्हें छोड़कर अकेले यहाँ उपस्थित हो स्वार्थीओ --- इस सबका तुम सबको दंड मिलेगा --!




सभी उपस्थित जनों के चेहरे झुके हुए थे शर्म से --- कोई कुछ समझ पता इससे पहले ही माता सती ने योगाग्नि प्रकट करके खुद का दाह कर लिया -- जैसे ही ये घटित हुआ -- शिव गणों ने क्रोध में आकर वहाँ विनाश मचा दिया लेकिन वहाँ उपस्थित ऋषि जनों एवं अन्य देवताओं कि सामूहिक शक्ति के सामने अंततः उन्हें हार जाना पड़ा -- यह सूचना जैसे ही भगवान शिव तक पहुंची क्रोध से उनका बुरा हाल हो गया --- क्रोधातिरेक में उन्होंने अपनी जटाओं को खोल दिया इसी और एक लट को पत्थर पर पटक दिया जिससे अति दुर्दान्त एवं तमोगुणी गण -- वीरभद्र -- का प्राकट्य हुआ और वीरभद्र पवन से भी तेज गति से यज्ञ स्थल में जा पहुंचा और विनाश कि वह लीला दिखायी कि सभी शूर वीरों को भागने के लिए जमीन कम पद गयी जो ज्यादा दिलेर थे वे अंग भंग करवाकर वहीँ पड़े रहे ----- इस प्रकार से यज्ञ का विध्वंश हो गया भगवान् शिव सती कि मृत देह के लेकर क्रोध में उन्मत्त ब्रह्मांड के चक्कर काटने लगे जिससे सारी व्यवस्था छिन्न भिन्न होने लगी और प्रलय के आसार नजर आने लगे -- तब सभी ने मिलकर भगवान् विष्णु कि शरण पकड़ी --- द्रवित होकर भगवान् विष्णु ने सोचा कि जब तक मृत देह महादेव के पास है उन्हें और प्रलय को रोक पाना असम्भव है --- इसलिए उन्होंने सुदर्शन चक्र को आज्ञा दी कि सती के पार्थिव शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर दे --!

सुदर्शन चक्र ने ऐसा ही किया और इस क्रिया में माता सती के पार्थिव देह के ५१ टुकड़े हुए जो विभिन्न जगहों पर जाकर गिरे --- वही इक्यावन स्थल शक्तिपीठों के नाम से विख्यात हुए !    





माता के शक्ति पीठों की संख्या अलग अलग शास्त्रों में अलग अलग कही गई है. शिव चरित्र में इनकी संख्या 51 कही गई है. यूं भी सामान्यत: 51 शक्ति पीठ ही माने गये है. देवी भागवत पुराण के अनुसार माता के शक्ति पीठों की संख्या 108 कही गई है. माता के शक्ति पीठों की संख्या को लेकर अलग- अलग मतभेद है. जिसमें कालिका पुराण के मत के अनुसार 26 शक्ति पीठ है. दुर्गा सप्तसती और तंत्रचूडामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है.



अब हम यहाँ पर दृष्टिपात करेंगे कि माँ के कौन से अंग के गिरने पर कौन सा शक्तिपीठ बना :-


१. हिंगुल / हिंगुलाज

लोकेशन :- बलूचिस्तान क्षेत्र - कराची डिस्ट्रिक्ट - १२५ किलोमीटर उत्तर पूर्व

अंग :- ब्रह्मरंध्र का ऊपरी हिस्सा

शक्ति :- कोट्टरी

भैरव :- भीमलोचन




माता हिंगुलाज मंत्र :-

ॐ हिंगुले परमहिंगुले अमृतरूपिणि तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय नमः स्वाहा















ब्रह्मरंध्रम् हिंगुलायाम् भैरवो भीमलोचन: |
कोट्टरी सा महामाया त्रिगुणा या दिगम्बरी ||



२, शर्कररे शक्तिपीठ / करवीर





लोकेशन :- सुक्कर स्टेशन के निकट कराची पाकिस्तान

अंग :- आँख

शक्ति :- महिष मर्दिनी

भैरव :- क्रोधीश








कहीं कहीं पर नैना देवी मंदिर बिलासपुर हिमाचल प्रदेश को भी इस शक्तिपीठ के नाम से वर्णित किया गया है




३. सुगंध शक्तिपीठ




लोकेशन :- शिकारपुर बरिसल से २० किलोमीटर दूर सोंध नदी के किनारे बांगला देश

अंग :- नासिका

शक्ति :- सुनंदा

भैरव :- त्रयम्बक




४. अमरनाथ शक्तिपीठ








लोकेशन :- अमरनाथ - पहलगावं - जम्मू कश्मीर - भारत

अंग :- गला

शक्ति :- महामाया

भैरव :- त्रिसंधेश्वर




५. ज्वाला शक्तिपीठ







लोकेशन :- ज्वाला जी - कांगड़ा - हिमाचल प्रदेश - भारत

अंग :- जीभ

शक्ति :- सिद्धिदा (अम्बिका)

भैरव :- उन्मत्त भैरव




६. देवी तालाब शक्तिपीठ









लोकेशन :- छावनी स्टेशन के पास - जालंधर - पंजाब - भारत

अंग :- बायां वक्ष

शक्ति :- त्रिपुरमालिनी

भैरव :- भीषण 
 

७. अम्बा जी शक्तिपीठ






लोकेशन :- अम्बाजी मंदिर गुजरात - भारत

अंग :- ह्रदय

शक्ति :- अम्बाजी

भैरव :- बटुक भैरव



८. पशुपति नाथ





लोकेशन :- गुजयेश्वरी मंदिर - निकट पशुपति नाथ मंदिर - नेपाल

अंग :- दोनों घुटने

शक्ति :- महाशिरा

भैरव :- कपाली




९. मानस शक्तिपीठ




लोकेशन :- मानस पाषाण शिला - मानसरोवर - कैलाश पर्वत - तिब्बत

अंग :- दायां हाथ

शक्ति :- दाक्षायणी

भैरव :- अमर




१०. बिराज शक्तिपीठ





लोकेशन :- बिराज - उत्कल क्षेत्र - उड़ीसा - भारत

अंग :- नाभि

शक्ति :- विमला

भैरव :- जगन्नाथ




११. मुक्तिनाथ शक्तिपीठ






लोकेशन :- मुक्तिनाथ मंदिर - गंडकी नदी के किनारे - पोखरा - नेपाल

अंग :- मस्तक

शक्ति :- गण्डकी चंडी

भैरव :- चक्रपाणि

१२. बाहुला शक्तिपीठ



लोकेशन :- केतुग्राम - कटुआ - अजेय नदी के किनारे वर्धमान - पश्चिम बंगाल - भारत

अंग :- बायां हाथ

शक्ति :- देवी बाहुला

भैरव :- भीरुक


१३. उज्जनी शक्तिपीठ



लोकेशन :- उज्जनी - ग़ुस्कुर स्टेशन - वर्धमान डिस्ट्रिक्ट से १६ किलोमीटर - पश्चिम बंगाल 

अंग :- दायीं कलाई 

शक्ति :- मंगल चन्द्रिका 

भैरव :- कपिलांबर


१४. त्रिपुरा शक्तिपीठ



 
लोकेशन :- माताबाड़ी पर्वत शिखर - राधा किशोर पुर गांव - उदरपुर - त्रिपुरा - भारत 

अंग :- दायां पैर
 
शक्ति :- त्रिपुर सुंदरी 

भैरव :- त्रिपुरेश


१५. छत्राल / छत्ताल




लोकेशन :- छत्राल - चन्द्रनाथ पर्वत शिखर - निकट सीताकुंड स्टेशन - चित्तगोंग जिला - बांग्लादेश 

अंग :- दायीं भुजा
 
शक्ति :- भवानी 

भैरव :- चंद्रशेखर


१६. त्रिस्रोत - भ्रामरी



लोकेशन :- त्रिस्रोत - सालबाड़ी गांव - बोडा मंडल - जलपाई गुडी - पश्चिम बंगाल
 
अंग :- बायां पैर 

शक्ति :- भ्रामरी
 
भैरव :- अंबर


१७. कामाख्या




लोकेशन :- कामाख्या - कामगिरी - नीलांचल पर्वत - गुवाहाटी - आसाम - भारत 

अंग :- योनि 

शक्ति :- कामाख्या 

भैरव :- उमानंद  



१८. जुगाड्या



लोकेशन :- जुगाड्या - खीरग्राम - वर्धमान - पश्चिम बंगाल - भारत 

अंग :- दायें पैर का अंगूठा
 
शक्ति :- जुगाड्या 

भैरव :- क्षीर खण्डक


१९. काली पीठ - काली बारी



लोकेशन :- काली पीठ / काली बारी / काली घाट - कोल्कता - पश्चिम बंगाल - भारत 

अंग :- दायें पैर कि अंगुलियां 

शक्ति :- कालिका
 
भैरव :- नकुलीश


२०. प्रयाग




लोकेशन :- प्रयाग / इलाहाबाद / संगम - उत्तर प्रदेश - भारत 

अंग :- हाथ की अंगुली
 
शक्ति :- ललिता

भैरव :- भव


२१. जयंती



लोकेशन :- जयंती - कालाजोर भोरभोग गांव - खासी पर्वत - जयंतिया - सिल्हैट - बांग्ला देश

अंग :- बायीं जंघा
 
शक्ति :- जयंती 

भैरव :- क्रमादीश्वर


२२. किरीट




लोकेशन :- किरीट - किरीटकोण गांव - लालबाग कोर्ट रोड स्टेशन - मुर्शिदाबाद - पश्चिम बंगाल - भारत
 
अंग :- मुकुट 

शक्ति :- विमला
 
भैरव :- सांवर्त


२३. मणिकर्णिका




 
लोकेशन :- मणिकर्णिका घाट - काशी / वाराणसी - उत्तर प्रदेश - भारत

अंग :- मणिकर्णिका
 
शक्ति :- विशालाक्षी एवं मणिकर्णी 

भैरव :- काल भैरव


२४. कन्याश्रम




लोकेशन :- कन्याश्रम - भद्रकाली मंदिर - कुमारी मंदिर - तमिलनाडु
 
अंग :- पीठ 

शक्ति :- श्रावणी 

भैरव :- निमिष


२५. कुरुक्षेत्र 


लोकेशन :- कुरुक्षेत्र - हरयाणा 

अंग :- एड़ी
 
शक्ति :- सावित्री
 
भैरव :- स्थनु 


२६. मणिबंध






लोकेशन :- मणिबंध - गायत्री पर्वत - पुष्कर तीर्थ क्षेत्र - अजमेर - राजस्थान - भारत


अंग :- दो पहुंचियां ( आभूषण )


शक्ति :- गायत्री


भैरव :- सर्वानंद


२७. श्री शैल


लोकेशन :- श्री शैल - जैनपुर गांव - उत्तर पूर्व - सिल्हैट जिला - बांग्ला देश


अंग :- गला


शक्ति :- महालक्ष्मी


भैरव :- शम्भरानन्द


२८. कांची



लोकेशन :- कांची - कोपी नदी के किनारे - उत्तर पूर्व बोलापुर स्टेशन - बीरभूमि जिला - पश्चिम बंगाल


अंग :- अस्थि


शक्ति :- देवगर्भ


भैरव :- रुरु


२९. कमलाधव




लोकेशन :- कमलाधव - सोन नदी के किनारे - गुफा - अमरकंटक - मध्य प्रदेश - भारत


अंग :- बायां नितम्ब


शक्ति :- काली


भैरव :- असितांग


३०. शोंदेश


लोकेशन :- शोंदेश - नर्मदा नदी का उद्गम क्षेत्र - अमरकंटक - मध्य प्रदेश - भारत


अंग :- दायां नितम्ब


शक्ति :- नर्मदा


भैरव :- भद्रसेन    



३१. रामगिरि



लोकेशन :- रामगिरि - चित्रकूट - झांसी से इलाहबाद रेलवे लाइन - कर्वी जिला - उत्तर प्रदेश - भारत

अंग :- दायां वक्ष

शक्ति :- शिवानी

भैरव :- चंदा




३२. वृन्दावन - भूतेश्वर महादेव मंदिर



लोकेशन :- वृन्दावन - भूतेश्वर महादेव मंदिर - मथुरा - उत्तर प्रदेश

अंग :- केश गुच्छ / चूड़ामणि

शक्ति :- उमा

भैरव :- भूतेश




३३. शुचि / शुचितीर्थम शिव मंदिर




लोकेशन :- शुचि - शुचितीर्थम शिव मंदिर - कन्याकुमारी - तिरुवनंतपुरम - तमिलनाडु

अंग :- ऊपरी जबड़ा / दाढ़

शक्ति :- नारायणी

भैरव - संहार




३४. पंचसागर





लोकेशन :- अज्ञात है

अंग :- निचला जबड़ा / दाढ़

शक्ति :- वाराही

भैरव :- महारुद्र




३५. करोटा


लोकेशन :- करतोयतत - भवानीपुर गांव - शेरपुर से बागुरा स्टेशन - बांग्ला देश

अंग :- बायीं पायल

शक्ति :- अर्पण

भैरव :- वामन




३६. श्री पर्वत






लोकेशन :- श्री पर्वत - लद्दाख पर्वत श्रंखला - जम्मू कश्मीर - भारत

अंग :- दायीं पायल

शक्ति :- श्री सुंदरी

भैरव :- सुंदरानंद




एक मान्यता ये भी है कि यह शक्तिपीठ श्रीशैलम - कुरनूल - आंध्र प्रदेश - भारत में अवस्थित है !




३७. विभाष



लोकेशन :- विभाष - तामलुक - पूर मेदिनीपुर जिला - पश्चिम बंगाल - भारत

अंग :- बायीं एड़ी

शक्ति :- कपालिनी (भीम रूप )

भैरव :- शर्वानन्द




३८. प्रभास




लोकेशन :- प्रभास - वेरावल स्टेशन - सोमनाथ मंदिर के पास - जूनागढ़ - गुजरात - भारत

अंग :- अमाशय / पेडू भाग

शक्ति :- चंद्रभागा

भैरव :- वक्रतुंड




३९. भैरव पर्वत



लोकेशन :- भैरव पर्वत - क्षिप्रा नदी के किनारे - उज्जैन - मध्य प्रदेश - भारत

अंग :- ऊपरी होठ

शक्ति :- अवनति

भैरव :- लंबकर्ण




४०. जनस्थान



लोकेशन :- जनस्थान - गोदावरी नदी घाटी - नासिक - महाराष्ट्र - भारत

अंग :- ठोढ़ी

शक्ति :- भ्रामरी

भैरव :- विकृताक्ष




४१. सर्वशैल / गोदावरीतीर



लोकेशन :- सर्वशैल / गोदावरीतीर - कोटिलेंगेश्वर - गोदावरी नदी के किनारे - राजमहेंद्री - आंध्र प्रदेश - भारत

अंग :- गाल

शक्ति :- राकिनी / विशेश्वरी

भैरव :- वत्स्नाभ / दंडपाणि




४२. बिराट



लोकेशन :- विराट - भरतपुर - राजस्थान - भारत

अंग :- बाएं पैर कि अंगुलियां

शक्ति - अम्बिका

भैरव :- अमृतेश्वर




४३ . रत्नावली




लोकेशन :- रत्नावली - रत्नावली नदी के किनारे - खानाकुल - कृष्ण नगर - हुगली - पश्चिम बंगाल - भारत

अंग :- दायां कन्धा

शक्ति :- कुमारी

भैरव :- शिवा




४४. मिथिला





लोकेशन :- मिथिला - जनकपुर रेलवे स्टेशन के पास - भारत - नेपाल सीमा - बिहार - भारत

अंग :- उमा

भैरव :- महोदर




४५. नलहाटी





लोकेशन :- नलहाटी - वीरभूमि - पश्चिम बंगाल - भारत

अंग :- पैरों कि हड्डी

शक्ति :- कालिका देवी

भैरव :- योगेश




४६. कर्नाट

लोकेशन :- स्थान अज्ञात है

अंग :- दोनों कान

शक्ति :- जयदुर्गा

भैरव :- अभिरु




४७. वक्रेश्वर





लोकेशन :- वक्रेश्वर - पापहर नदी के किनारे - दुबराजपुर स्टेशन - वीरभूमि - पश्चिम बंगाल - भारत

अंग :- भ्रूमध्य / भौंहों के मध्य का भाग

शक्ति :- महिषमर्दिनी

भैरव :- वक्रनाथ




४८. यशोर



लोकेशन :- यशोर - ईश्वरीपुर - खुलना जिला - बांग्लादेश

अंग :- हाथ एवं पैर

शक्ति :- यशोरेश्वरी

भैरव :- चंदा




४९. अट्टहास




लोकेशन :- अट्टहास - लाभपुर स्टेशन - वीरभूमि जिला - पश्चिम बंगाल - भारत

अंग :- ओष्ठ

शक्ति :- फुल्लरा

भैरव :- विश्वेश




५०. नंदीपुर




लोकेशन :- नंदीपुर - सैंथिया रेलवे स्टेशन - वीरभूमि - पश्चिम बंगाल - भारत

अंग :- गले का हार

शक्ति :- नंदिनी

भैरव :- नंदिकेश्वर




५१. लंका



लोकेशन :- स्थान अज्ञात है

अंग :- पायल

शक्ति :- इंद्राक्षी

भैरव :- राक्षसेश्वर

किन्तु एक मान्यता है कि यह स्थल ट्रिंकोमाली में है लेकिन पुर्त्तगाली बमबारी में ध्वस्त हो चुका है - अब यहाँ पर मात्र एक स्तम्भ सेष है और यह मंदिर त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट है 


      
 

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