Saturday, February 15, 2014

चौंसठ योगिनी - Chausath Yogini

मातृका शक्ति :- सीधा सा सम्बन्ध है इस शब्द का जिसमे प्रकृति या ऐसी शक्ति का बोध होता जो उत्पन्न करने और पालन करने का दायित्व निभाती है --- जिसने भी इस शक्ति की  शरण में खुद को समर्पित कर दिया उसे फिर किसी प्रकार कि चिंता करने कि कोई आवश्यकता नहीं वह परमानन्द हो जाता है ---- चौंसठ योगिनियां वस्तुतः माता आदिशक्ति कि सहायक शक्तियों के रूप में चिन्हित कि जाती हैं जिनकी मदद से माता आद्या इस संसार का राज काज चलाती  हैं एवं श्रष्टि के अंत काल में ये मातृका शक्तियां वापस माँ आद्या में पुनः विलीन हो जाती हैं और सिर्फ माँ आदिशक्ति ही बचती हैं फिर से पुनर्निर्माण के लिए !

बहुत बार देखने में आता है कि लोग वर्गीकरण करने लग जाते हैं और उसी वर्गीकरण के आधार पर साधकगण अन्य साधकों को हीन / हेय  दृष्टि से देखने लग जाते हैं क्योंकि उनकी नजर में उनके द्वारा पूजित रूप को वे मूल या प्रधान समझते हैं और अन्य को द्वितीय भाव से देखते हैं --- जबकि ऐसा उचित नहीं है --- हर साधक का दुसरे साधक के लिए सम भाव होना चाहिए -- मैं भ्रात  भाव तो नहीं कहूंगा यहाँ पर क्योंकि अगर कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाय तो आज के युग में सबसे ज्यादा वैमनस्य कि भावना भाइयों के मध्य ही विद्यमान है !

किन्तु नैतिक दृष्टिकोण और अध्यात्मिकता के आधार पर यदि देखा जाये तो न तो कोई उच्च है न कोई हीन  --- हम आराधना करते हैं तो कोई अहसान नहीं करते यह सिर्फ अपनी मानसिक शांति और संतुष्टि के लिए और अगर कोई दूसरा करता है तो वह भी इसी उद्देश्य कि पूर्ती के लिए !

अब अगर हम अपने विषय पर आ जाएँ तो इस मृत्यु लोक में मातृ शक्ति के जितने भी रूप विदयमान हैं सब एक ही विराट महामाया आद्यशक्ति के अंग / भाग / रूप हैं --- साधकों को वे जिस रूप की  साधना करते हैं उस रूप के लिए निर्धारित व्यवहार और गुणों के अनुरूप फल प्राप्त होता है। 

चौंसठ योगिनियां वस्तुतः माता दुर्गा कि सहायक शक्तियां है जो समय समय पर माता दुर्गा कि सहायक शक्तियों के रूप में काम करती हैं 

एवं दुसरे दृष्टिकोण से देखा जाये तो यह मातृका शक्तियां तंत्र भाव एवं शक्तियों से परिपूरित हैं और मुख्यतः तंत्र ज्ञानियों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र हैं !


प्रमुख मंदिर :- मंदिरों के हिसाब से देखा जाये तो चौसठ योगिनियों  के २ प्रमुख मंदिर उड़ीसा राज्य में और २ प्रमुख मंदिर मध्य प्रदेश में अवस्थित हैं !

उड़ीसा :-

१. एक प्रमुख मंदिर उड़ीसा में नवीं  शताब्दी में निर्मित हुआ था जो खुर्दा डिस्ट्रिक्ट हीरापुर में भुवनेश्वर से १५ किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है !
२. दूसरा चौंसठ योगिनी मंदिर ( रानीपुर झरिअल ) टिटिलागढ़ बलांगीर डिस्ट्रिक्ट में स्थित है लेकिन इस मंदिर में ६४ के बजाय अब ६२ मूर्तियां ही उपलब्ध हैं !

मध्य प्रदेश :-

१. नविन शताब्दी में ही निर्मित एक मंदिर मध्य प्रदेश के खजुराहो नामक स्थान पर है जो छतरपुर डिस्ट्रिक्ट में पड़ता है और यहाँ पहुँचने के लिए झाँसी से इलाहबाद वाली रेलवे लाइन से जाकर महोबा स्टेशन पर उतरने के बाद लगभग ६० किलोमीटर का सफ़र तय करने के बाद खजुराहो पहुंचा जा सकता है 

२. दूसरा मंदिर मध्य प्रदेश में ही भेड़ाघाट नमक स्थल पर है जो कि मध्य प्रदेश के जबलपुर डिस्ट्रिक्ट में पड़ता है 

अन्य :- स्थान स्थान पर इनके रूप और स्थित में भेद दृष्टिगत हो सकता है जैसे कि :-

१. हीरापुर में सभी योगिनियां अपने -२ वाहनों पर सवार हैं और खड़ी  मुद्रा में हैं 
२. रानीपुर झरिअल में सभी योगिनियां नृत्य मुद्रा में हैं 
३. जबकि भेड़ाघाट में सभी मूर्तियां ललितासन में बैठी हुयी हैं 


A.  हीरापुर में जिन नामों या रूपों का अस्तित्व मिलता है वे इस प्रकार हैं :-
१. बहुरूपा 
२. तारा 
३. नर्मदा 
४. यमुना 
५. शांति 
६. वारुणी 
७. क्षेमकरी 
८. ऐन्द्री 
९. वाराही 
१०. रणवीरा 
११. वानरमुखी 
१२. वैष्णवी 
१३. कालरात्रि 
१४. वैद्यरूपा 
१५. चर्चिका 
१६. बेताली 
१७. छिनमास्तिका 
१८. वृषभानना 
१९. ज्वाला कामिनी 
२०. घटवारा 
२१. करकाली 
२२. सरस्वती 
२३. बिरूपा 
२४. कौबेरी 
२५. भालुका 
२६. नारसिंही 
२७. बिराजा 
२८. विकटानन 
२९. महालक्ष्मी 
३०. कौमारी 
३१. महामाया 
३२. रति 
३३. करकरी 
३४. सर्पश्या 
३५. यक्षिणी 
३६. विनायकी 
३७. विन्द्यावालिनी 
३८. वीरकुमारी 
३९. माहेश्वरी 
४०. अम्बिका 
४१. कामायनी 
४२. घटाबारी 
४३. स्तुति 
४४. काली 
४५. उमा 
४६. नारायणी 
४७. समुद्रा 
४८. ब्राह्मी 
४९. ज्वालामुखी 
५०. आग्नेयी 
५१. अदिति 
५२. चन्द्रकांति 
५३. वायुबेगा 
५४. चामुंडा 
५५. मूर्ति 
५६. गंगा 
५७. धूमावती 
५८. गांधारी 
५९. सर्व मंगला 
६०. अजिता 
६१. सूर्य पुत्री 
६२. वायु वीणा 
६३. अघोरा 
६४. भद्रकाली 


अब इसके बाद कहीं - कहीं पर एक भ्रम और पैदा होता है यदि प्राचीन ग्रंथों का अध्यन और आकलन किया जाये वो ये कि :- क्या योगिनियों कि संख्या चौसठ  है या फिर इक्यासी किन्तु हम यहाँ पर सिर्फ सर्वमान्य संख्या चौंसठ को ही मानकर चल रहे हैं !

वैसे इसका एक सिद्धान्त ये है कि यदि हम ८ मातृका शक्तिया मानकर चलते हैं तो ये ८ सहायक सहकतियों के साथ मिश्रित होती हैं जिससे इनकी संख्या ८ गुना ८ = ६४ होती है किन्तु जब हम ९ मातृका शक्तियों के आधार पर गणना करते हैं तो इनकी संख्या ८१ हो जाती है - प्रत्येक मातृका शक्ति एक योगिनी के रूप में गणित होती है और अन्य ८ मातृका शक्तियों के साथ गुणित कि जाती है !

मेरा यह  लेख बहुत हद तक योगिनिआश्रम डॉट नेट एवं विकिपीडिआ  पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है।  




























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