कुण्डलिनी / प्राण शक्ति ११
तो हम अब शुरू करते है अपने अगले एपिसोड को जिसमे हम कुछ विधाओं पर चर्चा करेंगे जिनका अनुशरण करके हम सफलता के स्तर को जल्दी छू सकते हैं
उनमे से कुछ तो योग क्रियाएँ होती हैं ... प्रति चक्र के लिए एक योग मुद्रा या एक से अधिक योग मुद्राएं होती हैं .... जिनका प्रतिदिन एक या एक से अधिक बार प्रयोग किया जाता है और इसके साथ ही चक्रों का शोधन और संतुलन प्रारम्भ हो जाता है .
अगर विस्तृत रूप में देखा जाये तो योग एक ऐसी विधा है जिसमे हर बीमारी का इलाज सम्भव है .... साधना कि ऊंचाइयों को छू लेने कि क्षमता है .... इंसान को ईश्वर के नजदीक पहुँचाने कि क्षमता है ..!
१. राज योग :- योग मुद्राओं के बारे में अधिक जानने के लिए कृपया किसी जानकार व्यक्ति से संपर्क करें .... क्योंकि यह तकनीकी महत्व रखता है .... और इसका संतुलित प्रयोग ही सफलता को सुनिश्चित कर सकता है .... क्योंकि कुण्डलिनी जागरण में सभी उपयोग कि तकनीकों का संतुलन बहुत आवश्यक है .... इसके अभाव में संतुलन बिगड़ सकता है और कुण्डलिनी शक्ति लाभ के बजाय किसी नुकसान में भी फंसा सकती है ....!
२.क्रिया योग :- ठीक इसी प्रकार क्रिया योग होता है जिसमे मन्त्रों के माध्यम से कुण्डलिनी शक्ति को जाग्रत करने कि साधना सम्पन्न कि जाती है .... इस विधा में भी बहुत से मंत्र पाये जाते हैं ... उनका अलग अलग प्रभाव होता है ..... लकिन अंततः सभी मन्त्रों में बीज मंत्र शक्ति का प्रयोग होता है .... और इन मन्त्रों का निरंतर जाप क्रमशः कुण्डलिनी शक्ति को उर्ध्व में प्रस्थान करने के लिए प्रेरित करता है .... और समयांतराल में शक्ति ब्रह्म से मिलने के लिए प्रस्थान करती है .... कुण्डलिनी जागरण के लिए वैदिक मंत्र भी उपलब्ध हैं और इसके अलावा शबर मंत्र भी काफी तीव्र प्रभाव देने वाले हैं .!
मन्त्रों का चयन भी कभी खुद नहीं करना चाहिए इसके लिए भी पहले किसी जानकार व्यक्ति से संपर्क करें वही आपको बता सकता है कि आपको मंत्र का जाप कितनी बार और किस समय करना है .
३. हठ योग :- इस विधा में मिश्रित विधि का उपयोग किया है .... जिसमे शरीर को बलपूर्वक तैयार किया जाता है कि शरीर उसी धर्म का पालन करे जिसके लिए उसे आदेशित किया जा रहा है .
१. प्राणायाम
कुछ अतिरिक्त जानकारी आपको यहाँ से मिल सकती हैं .. लकिन मेरी सलाह ये है कि बिना किसी मार्गदर्शन के इसका उपयोग नुकसानदेह हो सकता है :- http://www.wikihow.com/Open-Your-Spiritual-चक्रस
२. चक्र शोधन क्रिया :-
अ. नेति क्रिया
ब. धौति क्रिया
स. नौली क्रिया
द. बस्ती क्रिया
य . कपाल भाति
र . त्राटक
इत्यादि .
४. संगीत योग :- इस विधा में कुछ संगीत धुनो के माध्यम से ध्यान कि दिशा में आगे कदम बढ़ाये जाते हैं और उन संगीत धुनो में ऐसे गुण होने होते हैं कि वे आपकी ध्यान कि अवस्था को बढ़ने के साथ आतंरिक अंगों में स्पंदन उत्पन्न करते हैं और जब चक्रों में स्पंदन उत्पन्न होता है तो कुण्डलिनी शक्ति क्रियाशील हो जाती है और ब्रह्म से मिलने कि दिशा में आगे बढ़ने लग जाती है .
इनमे से कुछ धुनो को जिनके बारे में मैं जनता हूँ बाईनूरल के नाम से जाना जाता है . ये सामान्य से कम अथवा अधिक वेब कि धुनें होती हैं .!
लकिन इनके बारे में भी बिना किसी जानकर व्यक्ति के परामर्श के अमल न करें क्योंकि आपको बिलकुल नहीं पता कि आपका शरीर कितने हाई या लो वेब को बर्दाश्त करेगा या नहीं .
५. बनस्पति योग :- कुछ बनस्पतियों में भी कुण्डलिनी शक्ति को जाग्रत करने कि अद्भुत शक्ति पायी जाती हाई जिसके बारे में उचित ज्ञान सिर्फ सिद्ध पुरुष या योगी ही दे सकते हैं .. इसलिए सामान्य जन मानस के लिए ये बात थोड़ी सी क्लिष्ट है कि कौन सी बनस्पति किस चक्र को जाग्रत करेगी .!
६. शक्तिपात :- यह विधा पूर्व में ही कुण्डलिनी जाग्रत गुरु के संरक्षण में संपन्न होती है और गुरुजन खुद ही अपनी कृपा स्वरुप अपने शिष्य कि कुण्डलिनी को जाग्रत कर देते हैं .
और इसके साथ ही मैं अपने इस धारावाहिक लेख को विराम दूंगा .... आशा करता हूँ कि समस्त पाठक वर्ग को इससे थोडा बहुत ज्ञान मिलेगा ही कुण्डलिनी या आतंरिक चेतना / प्राण शक्ति के बारे में .!
कोशिश करना इंसान धर्म है ... फल नियति के कर्मों के आधार पर निश्चित होता है ... इसलिए जब भी कोई कार्य करें तो पहले से फल कि अपेक्षा न करें ... प्रयास करेंगे तो सफलता आपकी दासी होकर ही रहेगी ...!
जय माता महाकाली
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