स्पष्टीकरण :-
कुण्डलिनी / प्राण शक्ति - ९
इस क्रम पर लिखने के साथ ही बहुत से प्रश्न और टिप्पणियां आ रही हैं मेरे पास .... अधिकतर लोगों का सवाल ये होता है कि ... क्या ये मेरे व्यक्तिगत अनुभव हैं या सिर्फ किताबी ज्ञान ?
इसके सन्दर्भ में कई बार मेरे पास कोई जवाब नहीं होता .. क्योंकि अनुभव और किताबी ज्ञान को कभी भी अलग नहीं किया जा सकता ... बहुत बार हम कहीं पढ़कर किसी विधा के बारे में जानते हैं इसके बाद बहुत से लोगों से उसके बारे में तर्क वितरक करते हैं तब जाकर कहीं ये बात निकल कर सामने आती है कि हम उसे अपने ऊपर प्रयोग कर सकते हैं या नहीं ... इसके बाद शुरू होती है जद्दोजहद इस बात कि कि शुरू कहाँ से करें ..... फिर से खाक छाननी पड़ती है ... तब कहीं जाकर अगर किस्मत साथ हुयी तो किसी सही व्यक्ति का मार्गदर्शन मिल पता है अन्यथा वही अंदर और अवसाद इसके बाद उस विधा से हमारा मन उचाट होने लगता है ...... !
कुण्डलिनी शक्ति के लिए कुछ विशेष तथ्य मैं और स्पष्ट करना चाहूंगा .... जिन्हे मेरे कई मित्र और गुरुजन अन्यथा भी ले सकते हैं किन्तु सच यही है और सफलता का मार्ग भी यही है :-
१. किसी भी साधना के लिए सर्व प्रथम किसी उचित गुरु का चयन करके गुरु दीक्षा जरुर ले लें.
२. कुण्डलिनी शक्ति एक अपरिमित शक्ति संचालन है इसका नियंत्रण साधारण व्यक्ति के वश कि बात नहीं है इसलिए बिना किसी के मार्गदर्शन के इस पर कार्य न करें .
३. कुण्डलिनी शक्ति कि अधिष्ठात्री माँ महाकाली हैं ... इनकी प्रचंड शक्ति को या तो ये स्वयं या फिर भगवन शिव ही नियंत्रित कर सकते हैं .
४. कुण्डलिनी शक्ति पर हाथ आजमाने से पहले सभी साधक पहले दस महाविद्याओं में से किसी एक कि साधना या फिर भगवन शिव कि साधना पर अपना लक्ष्य केंद्रित करें . और कम से कम ६ महीने या एक साल तक तन्मयता पूर्वक साधना के पश्चात् ही कुण्डलिनी शक्ति के बारे में सोचें .
५. कुण्डलिनी शक्ति उर्ध्व गामी शक्ति सञ्चालन होता है इसमें शक्ति का चलन ब्रह्म कि तरफ होता है जो कि सहस्रार चक्र पर स्थित होता है ....
६. बहुत से पुण्य प्रताप और तन्मयता से कि गयी सम्पूर्ण समर्पण सहित साधना के बाद ही इस शक्ति का जागरण सम्भव है ......!
७. एक छोटी सी भूल भी काल के ग्रास में फंसा सकती है ... इसलिए यदि जीवन से प्रेम हो तो कतई इस साधना कि तरफ रुख न करें .
८. क्रमशः चक्र भेदन मूलाधार से होते हुए आज्ञा चक्र तक सफ़र करने के बाद शक्ति सञ्चालन कि क्रिया संपन्न हो जाती है और इसके बाद शुरू होती है समाधी कि अवस्था ...
९. जब आज्ञा चक्र का भेदन पूर्ण हो जाता है तो कई बार साधक कई दिन के लिए कोमा - या निष्क्रियता कि अवस्था में भी चला जाता है ...! किन्तु यह बहुत लम्बा नहीं होता २ दिन से ७ दिन के बीच का होता है .
१०. कई बार साधकों के एक एक करके चक्र जाग्रत होते हैं ... उनके अनुभव भिन्न होते हैं .. और कई बार साधना करते रहने पर अचानक से शक्ति सञ्चालन प्रारम्भ होता है और समस्त चक्रों का भेदन कर देता है .... इस स्थिति के अनुभव भिन्न होते हैं ...!
किन्तु .... प्रक्रिया कोई भी हो ... साधक को महसूस होना प्रारम्भ हो जाता है जैसे ही वह शक्ति चालन के लिए कार्य करना शुरू करता है ...
..... मूलाधार कि स्थिति कई बार गुदा द्वार के पास बतायी जाती है .... किन्तु इस सिद्धान्त सर्वमान्य नहीं है ... क्योंकि चक्रों कि स्थिति सुषुम्ना नाड़ी के साथ बद्ध होती है ... और इनका स्थान रीढ़ कि हड्डी के साथ ऊपर कि तरफ जाता है है ... तो वैज्ञानिक गड़ना के हिसाब से जहाँ पूछ कशेरुक पाया जाता है .. कई बार मूलाधार चक्र का स्थान वहाँ होता है .... यदि आप अपनी एक ऊँगली या अंगूठे को पूछ कशेरुक वाली हड्डी के पास थोडा बलपूर्वक गड़ाते हैं तो आपको वहाँ पर हल्का सा स्पंदन महसूस होगा ...!
जैसे ही आपका शक्ति जागरण का प्रयास प्रारम्भ करते हैं आपके उन स्थानों में कुछ खुजली या कभी कभी मीठा सा दर्द प्रारम्भ हो जाता है जहाँ पर चक्र अवस्थित होते हैं ... यदि ऐसा नहीं अनुभव होता तो समझ लीजिये कि अभी आप सही रास्ते पर नहीं हैं ... हर व्यक्ति का अपना समय काल भी अलग हो सकता है ... किसी को कुछ महीनो में ही सफलता मिलने लग जाती है ... किसी को सालों लग जाते हैं ... और किसी के लिए पूरा जीवन कम पड़ जाता है ..
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