कुण्डलिनी / प्राण शक्ति - 10
कुण्डलिनी शक्ति / प्राण शक्ति १०
अब तक मैंने लगभग समस्त बिंदुओं पर अपने विज्ञ पाठकों से चर्चा कि है ... यदि कुछ अनुचित तर्कों और सठ मत्ता को छोड़ दिया जाये तो ..... अपने इस एपिसोड में मैंने देखा कि कैसे कुछ आलसी प्रवृत्ति के लोग ये प्रचारित करते हैं कि ... ये सब सम्भव नहीं है और इसके बारे में बात करने वाले लोग मुर्ख हैं ...!
एक सुधि पाठक ने तो यहाँ तक पूछ लिया कि क्या कुण्डलिनी को हम छू सकते हैं या देख सकते हैं ? यदि नहीं तो फिर ये कोरी कल्पना है ... और हम इस पर विश्वाश नहीं कर सकते ....!
अब मैं इस सम्बन्ध में क्या कहूं ?
सिर्फ इतना ही कह सकता हूँ कि अध्यात्म आप उन सब लोगों के लिए नहीं है ... जो उसे छूकर देखना चाहते हैं या आजमाइश कि कसौटी पर कसकर देखना चाहते हैं ...!
मैं दावे के साथ कहता हूँ कि आप इसे छू सकते हैं और जैसे चाहें वैसे आजमा सकते हैं ... लकिन पहले खुद को इस लायक बनाइये तो सही कि आप ऐसा कर सकें ...!
आप आसमान को नहीं छू सकते तो क्या इसका मतलब आसमान नहीं है ?
एक सज्जन ने तो यहाँ तक मुझसे पूछ लिया कि " सुना है कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी माता दक्षिणा काली से साक्षात् बात कर सकते थे "
मैंने जवाब दिया कि " हाँ कर सकते थे "
तो उन सज्जन ने पूछा " तो क्या मैं भी कर सकता हूँ " ?
मैंने उनको जवाब दिया कि " हाँ "
तो उनका प्र्शन था " लकिन मैं नहीं कर प् रहा बहुत कोशिश कि मैंने अब तक ... ऐसा क्यों " ?
मैंने उनसे पूछा कि " आप दिन में में कितना टाइम भक्ति के लिए देते हैं ..." ?
तो उन्होंने जवाब दिया " इस भाग दौड़ कि जिंदगी में ज्यादा वक़त है ही किसके पास ? लेकिन फिर भी पर्याप्त समय मैं दे देता हूँ "
मैंने पूछा फिर भी कितना ?
उनका जवाब था कि कभी १० मिनट तो कभी २० मिनट जैसा उपलब्ध हो ?
मैंने उनको जो जवाब दिया उससे वो चिढ गए और मेरी फेसबुक मित्र सूचि से स्वतः ही हट गए
" आप भक्ति के लिए समय अपने हिसाब से निर्धारित करते हैं तो फिर आपने सोच भी कैसे लिया कि माँ काली अपना समय आपके हिसाब से निर्धारित करेंगी ? और दूसरी बात ये कि स्वामी रामकृष्ण बन्ने के लिए आपको अपनी पत्नी को भी माँ का दर्ज देना होगा ... आप दे सकते हैं क्या ? आप माता महा काली से बात तो क्या ध्यान में भी उनकी मूर्ती तक के दर्शन नहीं कर सकते ... पहले आप स्वामी जी कि पूरा जीवन चरित्र पढ़िए फिर खुद को उस चरित्र कि तरह ढलने को कोशिश कीजिये ... तब जाकर कहीं सिर्फ उम्मीद करिये कि आप पत्र हैं ... लकिन पात्रता इस बात कि गारंटी नहीं है कि आप ऐसा करने में सफल हो ही जायेंगे ...!
पता नहीं आज कि दुनिया में क्यों लोग सीता कि कामना करते हैं जब वो खुद राम नहीं हैं ?
क्यों लोग स्वामी रामकृष्ण कि तरह करना चाहते हैं जबकि उनका खुद का चरित्र स्वामी जी के हजारवें भाग के जितना भी नहीं है ?
क्यों लोग सिद्धियों के पीछे भागते हैं जबकि उनके लिए एक आसान पर ५ मिनट भी बैठा नहीं जा सकता ?
क्यों ?
लेकिन शायद इस सवाल का जवाब तो नियति के पास भी न हो ... क्योंकि पगडण्डी / छोटा रास्ता लोगों कि पसंद बन गया है ... कोई भी समग्र रस्ते का चयन नहीं करना चाहता ... लकिन फल समग्र चाहता है ....
ये तो था मेरा अपना अनुभव जो मैंने महसूस किया ... अब अपने अगले एपिसोड से हम उन विधियों का आकलन करेंगे जो कि कुण्डलिनी जागरण में सहायक हैं ..... और अंत में मैं उस विधि का उल्लेख करूँगा जो कि मिश्रित विधि है और जिसका मैं पालन किया था और उसका फल बहुत ही प्रभावशाली था .
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